अल्लाह के नजदीक नमाज़ का बहुत बड़ा मर्तबा है। कोई इबादत अल्लाह के नजदीक नमाज़ से ज्यादा प्यारी नहीं है। अल्लाह ने अपने बंदों पर पांच वक्त की नमाज फर्ज कर दी हैं, उनके पढ़ने का बड़ा सवाब है और उन के छोड़ देने से बड़ा गुनाह होता है।
सिर्फ मुसलमान की औलाद होने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता। उन हुक्मों और बारीकियों का जानना हर शख्स पर फ़र्ज़ है, जो अमीर व गरीब के फर्क के बग़ैर सब के लिए बराबर और जरूरी हैं।
जैसे, अक़ीदों का ठीक होना और नमाज़, रोजा, वुजू, गुस्ल, हराम-हलाल का जानना। फिर अगर मालदार है तो जकात व हज के मस्ले मालूम करना फ़र्ज होगा।
हदीस शरीफ में आया है कि जो कोई अच्छी तरह से वजू किया करे और खूब अच्छी तरह दिल लगा के नमाज़ पढ़ा करेगा, कयामत के दिन अल्लाह उसके छोटे-छोटे गुनाह सब बक्श देगा।
हज़रत मुहम्मद सल्ल० ने फ़र्माया है कि क़ियामत में सब से पहले नमाज़ ही की पूछ होगी और नमाजियों के हाथ-पांव और मुह क़ियामत में आफ़ताब की तरह चमकते होंगे और बे-नमाज़ी इस दौलत से महरूम रहेंगे ।
अल्लाह तआला नमाज़ के बारे में कहता है कि:
(ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे पास नाज़िल की गयी है उसकी तिलावत करो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो बेशक नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से बाज़ रखती है और ख़ुदा की याद यक़ीनी बड़ा मरतबा रखती है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे वाक़िफ है
(कुरआन, 29:45)
नमाज़ की 7 शर्तें
नमाज़ शुरू करने से पहले कुछ शर्तें होती हैं, अगर इन में से एक चीज भी छूट जाएगी तो नमाज़ नहीं होगी। नमाज के लिए 7 शर्तें कुछ इस प्रकार हैं-
- बदन का पाक होना – अगर वजू न हो तो वुजू करें, नहाने की जरूरत हो तो ग़ुस्ल करे
- कपड़ो का पाक होना
- जगह का पाक होना – जिस जगह नमाज पढ़नी है, वह भी पाक होनी चाहिए
- सतर को छुपाना – सिर्फ़ मुंह और दोनों हथेली और दोनों पैर के सिवा सिर से पैर तक सारा बदन खूब ढांक ले
- नमाज़ का वक़्त होना – वक्त होने पर ही नमाज़ पढ़े, बे वक़्त नमाज़ नहीं पढ़नी चाहिए
- क़िब्ले की तरफ मुंह होना
- नियत करना – यानी दिल से इरादा करना
वजू का तरीका
वजू किस तरह किया जाता है?
- साफ़ बर्तन में पाक पानी लेकर पाक साफ और ऊंची जगह पर बैठो। किबले की तरफ मुँह कर लो तो अच्छा है और इसका मौका न हो तो कुछ नुकसान नहीं। फिर बिस्मिल्लाह पढ़ो और तीन बार गट्टे तक हाथ धोए।
- फिर तीन बार कुल्ली करो, फिर दातुन करो, दातुन न हो तो उंगली से दांत मल लो।
- फिर तीन बार नाक में पानी डाल कर बांये (उल्टा) हाथ की छोटी उंगली से नाक साफ करो।
- फिर तीन बार मुंह धोए, मुँह पर पानी जोर से न मारो, बल्कि धीरे से माथे पर पानी डाल कर धोए। माथे के बालों से ठोड़ी के नीचे तक और इधर-उधर दोनों कानों तक मुँह धोना चाहिए।
- फिर कोहनियों समेत दोनों हाथ धोओ, पहले दाहिना (सीधा) हाथ तीन बार फिर बांया हाथ तीन बार।
- अब हाथ पानी से भिगो कर सिर का मसह करो, फिर कानों और गर्दन का मसा करो, मसा सिर्फ एक एक बार करना चाहिए।
- फिर तीन तीन बार दोनों पांव टखनों समेत धोओ, पहले दायां और फिर बायां धोना चाहिए।
गुस्ल का तरीका
अगर आपके बदन पर कोई नजासत (गंदगी) लगी हुई हो तो आपको ग़ुस्ल करना चाहिए। गुस्ल के माने हैं नहाना। मगर नहाने का शरीअत में एक खास तरीका है।
गुस्ल का तरीका यह है कि पहले दोनों हाथ गट्टों तक धोए फिर इस्तिंजा करे और बदन से हक्कीकी नजासत धो डाले, फिर ऊपर बताए गए तरीके के मुताबिक वुजू करें, फिर सारे बदन को थोड़ा पानी डालकर हाथ से मले, फिर सारे बदन पर तीन बार पानी बहाए।
नियत का तरीका
नियत करने का बयान- जुबान से नियत करना ज़रूरी नहीं, बल्कि दिल में जब इतना सोच ले कि मैं आज की ज़ुहर की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ता हूं या पढ़ती हूं ।
अगर सुन्नत पढ़ रहे हो, तो यह सोच ले कि मैं ज़ुहर की सुन्नत नमाज़ पढ़ता हूं या पढ़ती हूं, बस इतना ख्याल करके अल्लाहु अकबर कहे और हाथ बांध ले, तो नमाज़ हो जायेगी । जो लम्बी-चौड़ी नीयत लोगों में मशहूर है, उसका कहना जरूरी नहीं है।
नमाज़ के फ़र्ज़
नमाज़ में 6 फ़र्ज़ हैं इनमें से एक भी फ़राएज़ छूट जाये तो नमाज़ ही नहीं होगी लिहाज़ा दोहरानी पड़ेगी ।
- तकबीरे तहरीमा – अल्लाहु अकबर कहना
- क़याम करना – काबे की तरफ मुँह करके खड़े होना
- किरात करना – क़ुरान का कुछ हिस्सा पढ़ना
- रुकू करना – झुक कर अपने घुटनों को अपने हाथों से पकड़ना
- सजदे करना – ज़मीन पर सिर रखना
- क़ादा-ए-आख़ीरा – आख़िरी रकअत में बैठना
नमाज पढ़ने का तरीका
नमाज़ या तो 2 रकात की होती है या 3-4 रकत की। पहले आसानी के लिए हम 2 रकात नमाज़ का तरीक़ा सीखेंगे फिर 3 और 4 रकात
2 रकात नमाज़ का तरीका इस तरह है –
1. वजू करके पाक कपड़े पहनकर पाक जगह पर किबले की तरफ मुँह करके खड़े हो जाने के बाद नमाज की नियत करके दोनों हाथ कानों तक उठाओ, हथेलियों का रुख काबा की तरफ रहे और तकबीरे तहरीमा यानि “अल्लाहु अकबर” कहकर हाथों को नाफ़ के नीचे बांध लो।
दायां हाथ ऊपर और बायां हाथ नीचे बांध लो। नमाज में इधर-उधर न देखो अदब से खड़े रहो। पैर के दोनों पंजों के दर्मियान चार अंगुल का फासला हो ।
हाथ बांधकर सना पढ़ो –
”सुब्हा-न-कल्ला हुम-म व बिहमदि-क व तबा-र कस्मु-क-व तआला जददु-क व ला इला-ह गैरूक ”
2. फिर तअव्वुज यानी ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश शैतानिर-रजीम’ और तस्मीया यानी ‘बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम’ पढ़ कर अल-हम्द शरीफ़ जिसे सुरे फातिहा भी कहते है पढ़ो।
सुरे फातिहा:
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
अर्रहमान निर्रहीम मालिकी यौमेद्दीन
इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन
इहदिनस सिरातल मुस्तकीम
सिरातल लजिना अन अमता अलैहिम
गैरिल मग्ज़ुबी अलैहिम वला ज़ाल्लिन
3. सुरे फातिहा ख़त्म करके धीरे से ‘आमीन’ कहो, फिर कुरान से कोई सूरह या कम से कम तीन आयतें पढ़ें। उदाहरण के लिए आप ये छोटी सी सूरह पढ़ें
सूरह इख़्लास:
कुलहु अल्लाहु अहद
अल्लाहु समद
लम यलिद वलम युअलद
वलम या कुल्लहू कुफुअन अहद
4. सूरह इख़्लास पढ़ने के बाद फिर अल्लाहु अकबर कह कर रूकू के लिए झुको। रुकू में दोनों हाथों से घुटनों को पकड़ लो।
5. रूकू की तस्बीह यानी “सुब्हा-न रब्बीयल अजीम” तीन या पाँच बार पढ़ो।
ध्यान रखें: रूकू इस तरह करना चाहिए कि कमर और सिर बराबर रहे, यानी सिर न कमर से ऊँचा रहे और न नीचा हो जाए। और दोनों हाथ पसलियों से अलग और घुटनों को दोनों हाथों से मजबूत पकड़ लेना चाहिए।
6. फिर “समि-अल्लाहु-लिमन हमिदह” कहते हुए सीधे खड़े हो जाओ।
7. सीधे खड़े होकर “रब्बना लकल हम्द” पढ़े।
8. फिर तकबीर (यानि “अल्लाहु अकबर”) कहते हुए सजदे में इस तरह जाओ कि पहले दोनों घुटने जमीन पर रखो, फिर दोनों हाथों के बीच में पहले नाक, फिर माथा जमीन पर रखो।
9. सजदे की तस्बीह यानी “सुब्हा-न रब्बि-यल आला‘ तीन या पाँच बार कहो।
ध्यान रखें: सजदा इस तरह करना चाहिए कि हाथों के पंजे जमीन पर रहें, और कलाइयाँ और कुहनियाँ जमीन से ऊंची रहें, और पेट रानों से अलग रहे, और दोनों हाथ पस्लियों से अलग रहें।
10. फिर तक्बीर कहते हुए उठकर बैठ जाये।
11. फिर दोबारा अल्लाहु अकबर कहते हुए सजदे में जायें और सजदे की तस्बीह यानी “सुब्हा-न रब्बि-यल आला‘ तीन या पाँच बार पढ़े।
12. सजदों तक एक रकअत पूरी हो गई। दूसरी रकआत शुरू करने के लिए तक्बीर कहते हुए खड़े हो जाओ।
ध्यान रखें: दोनों सजदों के बीच में और तशहदुद पढ़ने की हालत में इस तरह बैठना चाहिए कि दायाँ पाँव खड़ा रखें और उसकी उंगलियां क़िब्ले की तरफ रहें, और बायाँ पाँव बिछा कर उस पर बैठ जाओ (इसे जलसा कहते हैं)। बैठने की हालत में दोनों हाथ घुटनों पर रखने चाहिए।
13. तस्मीया यानी ‘बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम’ पढ़कर अल-हम्दु शरीफ के साथ कोई और सूरत मिलाओ और फिर एक रूकूअ और दो सजदे करके बैठ जाओ।
14. पहले अत्तहिय्यात पढ़ो
अत्ताहियातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तैयिबातू
अस्सलामु अलैका अय्युहन नाबिय्यु रहमतुल्लाही व बरकताहू
अस्सलामु अलैना व आला इबादिल्लाहिस सालिहीन
अशहदु अल्ला इलाहा इल्ललाहू व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसुलहू
ध्यान रखें: जब तशहदुद में कलमा “ला इलाहा” पर पहुंचे तो सीधे हाथ की तर्जनी ऊँगली को शब्द “ला” पर उठा दें और “इल्ला” पर गिरा दे और तमाम उँगलियाँ तुरन्त सीधी कर दे।
15. फिर दुरूद शरीफ पढ़ो
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन
कमा सल्लैता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद,
अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन
कमा बारक्ता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद
16. फिर ये दुआ पढ़ो (दुआ ए मसुरा)
अल्लाहुम्मा इन्नी ज़लमतू नफ़्सी ज़ुलमन कसीरा,
वला यग़फिरुज़-ज़ुनूबा इल्ला अनता,
फग़फिरली मग़ फि-र-तम्मिन ‘इनदिका,
वर ‘हमनी इन्नका अनतल ग़फ़ूरूर्र रहीम
17. फिर नमाज को खत्म करने के लिये एक बार दायें, फिर एक बार बायीं तरफ मुंह करके सलाम कहें “अस्सलामु अलैकुम व-रह्-मत उल्लाह”। यह दो रकआत नमाज पूरी हो गई।
18. सलाम फेरने के बाद तीन बार ‘अस्तगफिरुल्लाह’ कहें और “अल्लाहुम्मा अन्तास्सलाम व मिनकस्सलाम तबारकता या जल जलाली वल इकराम” पढ़े और हाथ उठा कर दुआ माँगो।
नमाज़ के बाद उंगलियों पर गिन कर, सुब्हान अल्लाह 33 बार, अल-हम्दु-लिल्लाह 33 बार, और अल्लाहु अकबर 34 बार पढ़ना चाहिए, इसका बहुत सवाब है।
3 और 4 रकात नमाज़ का तरीका
नमाज की तीन या चार रकआतें पढ़नी हों तो किस तरह पढ़नी चाहिए?
अगर दो रकात वाली नमाज है तो फिर इस तशहदुद के बाद दुरूद शरीफ और दुआ पढ़कर सलाम फेर दे। लेकिन अगर चार रकात वाली नमाज है तो तशहदुद के बाद अल्लाहु अकबर कह कर खड़े हो जाये।
दो रक़ातें तो उसी कायदे से पढ़ी जाए जो ऊपर बयान हुए हैं, मगर बैठने की हालत में अत्तहिय्यात के बाद दरूद शरीफ न पढ़े, बल्कि अल्लाहु अकबर कहकर खड़े हो जाएँ। फिर नमाज वाजिब, सुन्नत या नफील है तो बाकी दो रक़ातें पहली दो रक़ातों की तरह पढ़ लें।
नमाज अगर फर्ज है तो तीसरी रक़ात और चौथी रक़ात में अल-हम्दु शरीफ के बाद सूरत न मिलाएं। बाकी सब उसी तरह पढ़ें जिस तरह पहली दो रकअतें पढ़ी हैं।
औरतों की नमाज़ का तरीका
ऊपर बताया गया तरीक़ा मर्दो के लिए है। मदों और औरतों के नमाज़ का तरीक़ा एक ही है, महिलाओं के लिये चन्द बातों में फर्क है । जिन जिन बातों में कुछ फर्क है वह नीचे लिखी जा रही हैं।
- महिला, तकबीरे तहरीमा के समय कन्धों तक हाथ उठायेगी और कपड़े से बाहर न निकालेगी।
- कियाम में सीने पर हाथ बाँधेगी, और हथेली पर हथेली रखेंगी ।
- रुकू में कम झुकेगी और घुटनों को झुकाएगी ओर हाथ घुटनों पर रखेगी, मगर उनको पकड़ेगी नहीं, और उँगलियाँ कुशादा न रखेगी।
- रुकू और सज्दे सिमट कर करेगी। सज्दा में पेट, रान से और रान पिंडली से मिलायेगी और हाथ जमीन पर बिछा देगी।
- अत्तहिय्यात में बैठते समय दोनों पाँव दाहिनी तरफ, या बायीं तरफ निकाल कर बैठेगी और उँगलियाँ मिला कर रखेगी।
- बाकी सब कुछ उसी प्रकार करेगी, जिस प्रकार मर्द करता हैं।
ध्यान रखें: जब आप इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हो तो इमाम और मुक्तदी की नमाजों में कुछ फर्क होता है। इमाम और मुनफरिद और मुकतदी की नमाज में थोड़ा-सा फर्क है।
एक फर्क यह है कि इमाम और मुनफरिद पहली रकात में सना के बाद “अऊज़ू बिल्लाहि मिनश शैतानिर-रजीम” आखिर तक और ‘बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम’ आख़िर तक पढ़ कर सुरे फातिहा और सूरत पढ़ते हैं। मगर मुक्तदी (इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने वाला) को सिर्फ पहली रकात में सना पढ़कर दोनों रकअतों में चुपचाप खड़ा रहना चाहिए।
दूसरा फर्क यह है कि रूकू से उठते वक्त इमाम और मुनफ़रिद तस्मीअ यानि “समि-अल्लाहु-लिमन हमिदह” और मुनफ़रिद तस्मीअ के साथ तहमीद यानि “रब्बना लकल हम्द” भी पढ़ सकता है, मगर मुकतदी को सिर्फ ‘रब्बना लकल हम्द’ कहना चाहिए।
bahut accha likhe ho lekin mujhe apka email or facebook id mil sakta hai?
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