नमाज़ किसे कहते है | मुसलमान नमाज़ क्यों पढ़ते है

नमाज़ या सलात किसे कहते हैं?


नमाज़ ख़ुदा तआला की इबादत और बन्दगी करने का एक ख़ास ढंग है जो ख़ुदा तआला ने क़ुरआन में और हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने हदीस में मुसलमानों को सिखाया है।

घर में या मस्जिद में अल्लाह तआला के सामने हाथ बांधकर खड़े होते हैं और क़ुरआन शरीफ पढ़ते हैं। अल्लाह तआला की तारीफें बयान करते हैं। उसकी बुजुर्गी और बड़ाई करते हैं।

उसके सामने झुक जाते हैं और जमीन पर सिर रखकर उसकी बड़ाई और अपनी कमजोरी और जिल्लत जाहिर करते हैं।

नमाज़ मुसलमानों के एक अल्लाह और मानवता के लिए अन्तिम संदेश, इस्लाम पर ईमान का व्यावहारिक प्रमाण है। इसे कुछ निर्धारित समयों पर पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) द्वारा अनिवार्य कर दिया गया है।

हिंदी में नमाज़ का तरीका

मुसलमान नमाज़ क्यों पढ़ते है?

ये नमाजें फर्ज हैं और ये इबादत करने वाले और उसके मालिक के बीच सीधा सम्बन्ध स्थापित करती हैं। इस्लाम मुसलमानों से केवल इस इबादत को करने का ही आदेश नहीं देता बल्कि यह उनसे चाहता है कि वह अपने दिलों को शुद्ध करें अल्लाह तआला नमाजों के बारे में कहता है कि:

(ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे पास नाज़िल की गयी है उसकी तिलावत करो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो बेशक नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से बाज़ रखती है और ख़ुदा की याद यक़ीनी बड़ा मरतबा रखती है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे वाक़िफ है

(कुरआन, 29:45)

अल्लाह ने मनुष्य को अपनी इबादत करने के लिए पैदा किया है। वह कुरआन में फरमाता हैः

मैंने तो जिन्‍नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करें।

(कुरआन, 51:56)

निःसन्देह मैं ही अल्लाह हूँ।मेरे  सिवा कोई पूज्य नहीं।अतः तू मेरी बन्दगी कर और मेरी याद के लिए नयाज़ कायम कर।

(कुरआन, 20:14)

जब हम इस्लामी इबादत का विश्लेषण करते हैं और इसकी अनोखी प्रकृति का अध्ययन करते हैं तो हमें यह पता चलता है कि यह केवल शारीरिक गतिविधि या कुरआन का मात्र उच्चारण नहीं होता।

इस अद्वितीय दुआ में नैतिक उत्थान, शारीरिक अभ्यास, बौद्धिक ध्यान और आध्यात्मिक श्रद्धा सब कुछ सम्मिलित है। यह विशेष रूप से इस्लामी अनुभव है जिसमें शरीर की प्रत्येक माँसपेशी अल्ल्लाह की बड़ाई का गुणगान करने में आत्मा और मन के साथ होती है।

चूँकि नमाज़ एक औपचारिक इबादत है इसलिए यह सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य अनुशासन है। बन्दे के लिए इसे अनिवार्य करके इस्लाम ने अपने अनुयायियों को अनुशासित करना और अल्लाह के अस्तित्व से उन्हें सचेत रखना चाहा है।

नमाज एक मुसलमान को समय का पाबन्द करती है और उसे जीवन के स्वस्थ संचालन का अभ्यस्त बनाती है। ताज़ा पानी से वजू के माध्यम से नमाज़ ताजगी पैदा करने और स्वच्छता देने वाला अभ्यास है और बार-बार खड़े होने, झुकने, सजदा करने और बैठने के द्वारा यह शरीर के लिए एक अभ्यास होती है।

नमाज़ आध्यात्मिक सन्तोष और भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति है। प्रतिदिन की शारीरिक आवश्यकताओं से अपने आप को मुक्त करना, अल्लाह पर और उसके अस्तित्व और उसकी मर्जी पर ध्यान लगना अपने आप को परम सत्य और कायनाती हस्ती तक ऊपर उठाना है।

इस तरह का अभ्यास करके इबादत करने वाला जीवन की समस्याओं का सामना करने के लिए पहले की तुलना में अधिक तैयार हो जाता है ।

नमाज़ में जो बातें कही जाती हैं और कुरआन के उच्चारण द्वारा मन के लिए जो बातें प्रस्तुत की जाती हैं वह भलाई के कार्य करने की प्रतिबद्धता, बुराई से बचने और व्यक्तित्व के अन्दर संसार को मूल्यों से भर देने की क्षमता प्रदान करती है ।

नमाज़ जब समूह के साथ (जमाअत के साथ) पढ़ी जाती है तो मिल-मिलकर पंक्तियों में खड़े होना अन्ततः मुसलमानों को दूसरों की आवश्यकताओं पर ध्यान देने, विश्व-बन्धुत्व पैदा करने और दूसरों की चिन्ता करने पर उभारती है।

प्रतिदिन कितनी बार नमाज़ पढ़ी जाती है?

हर मुसलमान चाहे वह मर्द हो या औरत ,उसे प्रतिदिन पाँच नमाज़े समय पर पढ़नी चाहिए ,यदि उसके पास छोड़ने का वैध कारण न हो। यह पाँच नमाज़े हैं: 

1. फज्र: फज्र की नमाज़ सूरज निकलने से ठीक पहले होती है।

2: जुहर: जुहर की नमाज़ दोपहर बाद उस समय होती है जब सूरज सिर से ढलने लगता है।

3. असर: तीसरी नमाज अस्र उस समय होती है जब चीजो की छाया अपनी लम्बाई की दो गुनी हो जाती है।

4. मगरिब: मग़रिब की नमाज़ सूर्यास्त के तुरन्त बाद पढ़ी जाती है।

5. इशा: पाँचवी या दिन की आखिरी नमाज़ उस समय पढ़ी जाती है जब रात का अधेरा पूरी तरह छा जाता है। यह समय लगभग सूर्यास्त के 90 मिनट बाद आरम्भ होता है।

उपरोक्त नमाज़ों की प्रकृत्ति, शारीरिक स्थिति और इनमें पढ़ी जाने वाली दुआएँ एक समान होती हैं । लेकिन उनकी लम्बाई अर्थात रकअतों की संख्या भिन्न होती है।

जब ईमान वाला नमाज़ पढ़ता है, उस समय वह अपने स्वामी से बहुत निकट और गुप्त सम्बन्ध में होता है और उस अवसर पर उसे यह जानना चाहिए कि वह अपने मालिक से क्या कह रहा है?

नमाज़ पढ़ने के बहुत से फायदे होते हैं

  • नमाज़ी आदमी का बदन और कपड़े पाक और साफ़ सुथरे होते हैं।
  • नमाज़ी आदमी से ख़ुदा राजी और खुश होता है।
  • हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स० नमाजी से राजी और खुश होते हैं।
  • नमाज़ी आदमी ख़ुदा तआला के नजदीक नेक होता है।
  • नमाज़ी आदमी की अच्छे लोग दुनिया में भी इज्जत करते हैं।
  • नमाजी आदमी बहुत से गुनाहों से बच जाता है।
  • नमाज़ी आदमी को मरने के बाद ख़ुदा तआला आराम और सुख से रखता है।

नमाज़ से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब:

नमाज़ पढ़ने से पहले हाथ-पाँव धोते हैं उसे क्या कहते हैं?

उसे वजू कहते हैं। बगैर वजू के नमाज़ नहीं होती।

पाँचों नमाजों के नाम क्या हैं?

पहली नमाज़ ‘फज्र’ जो सुबह के समय सूरज निकलने से पहले पढ़ी जाती है। दूसरी नमाज़ ‘ज़ुहर’ जो दोपहर को सूरज ढलने के बाद पढ़ी जाती है। तीसरी नमाज़ ‘अस्र’ जो सूरज छिपने से डेढ़-दो घंटा पहले पढ़ी जाती है।चौथी नमाज़ ‘मगरिब’ जो शाम को सूरज छिपने के बाद पढ़ी जाती है। पाँचवीं नमाज़ ‘इशा’ जो डेढ़-दो घंटे रात आने पर पढ़ी जाती है।

अज़ान किसे कहते हैं?

जब नमाज़ का समय आ जाता है तो नमाज़ से कुछ देर पहले एक आदमी खड़े होकर ज़ोर-ज़ोर से नमाज़ के लिए पुकारता है उसे अज़ान कहते है। अज़ान के बारे में अधिक पढ़े

Post a Comment