पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) का जन्म और शुरुआती साल


अल्लाह के पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का जन्म 570 ई0 को मक्का के एक सम्मानित परिवार बनू हाशिम (हाशमी वंश) में हुआ, जिसे मक्का में और मक्का के आस-पास के कबीलों में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था ।

इस वंश के साथ-साथ विशेष रूप से Muhammad (SAW) से एक कष्टप्रद और असहनीय व्यक्तिगत इतिहास भी ज़ुड़ा हुआ है।

पिता का निधन

उनके पिता अव्दुल्लाह का देहान्त उस समय हुआ जब उनकी माँ आमिना (रजि0) दो महीने की गर्भवती थीं । अपने देहान्त के समय उनके पिता मक्का के उत्तर में स्थित यस्रीव नगर की यात्रा पर थे ।

मुहम्मद (सल्ल0) को मक्का में दो प्रकार की परस्थितियों से सामना था; एक मानसिक तनाव यह था कि जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता का देहान्त हो चुका था जिसके कारण उनके जीवन में स्थिरता नहीं थी और दूसरी ओर वह एक संग्रान्त वंश से सम्बन्ध रखते थे।

आप का जन्म पीड़ाहीन रहा

‘मुहम्मद’ नाम जिसका अर्थ प्रशंसित अथवा प्रशंसा योग्य है और यह नाम उस समय अरब प्रायद्धीप में प्रचलित नहीं था ।

यह नाम उनकी माँ के मन में उसी समय आ गया था जब मुहम्मद (सल्ल0) अभी गर्भ में थे । कहा जाता है कि यही स्वप्न उनको “जननायक” के जन्म के समय भी दिखाया गया था

इस स्वप्न के अनुसार जब आप (ﷺ) का जन्म हुआ तो वह ये शब्द कहती थीं, ‘शैतान के धोखे से सुरक्षा के तिए मैं इन्हें एक मात्र अल्लाह के शरण में देती हूँ।’

अपने पति की मृत्यु के शोक और बच्चे के जनम के स्वागत की प्रसन्नता के बीच आमिना (रजि0) बार-बार कहती थीं कि इस गर्भ के साथ आश्चर्यजनक निशानियाँ बारम्बार घटित होती रहीं और इसके पश्चात असाधारण रूप से बच्चे का जन्म पीड़ाहीन रहा ।

शुरुआती जीवन

अनाथ हजरत मुहम्मद (सल्ल0) चार वर्षों तक दाई हलीमा (रजि0) की देख-रेख में अरव मरुस्थल के बनू साद (साद की सन्तान) बददू कबीले के साथ रहे ।

उन्होंने बद्दू लोगों के साथ बद्दू जीवन व्यतीत किया, जो कि अत्यन्त निर्जन और कठोर प्राकृतिक वातावरण था, जिसके चारो ओर जहाँ तक दिखाई देता क्षितिज ही नज़र आता।

जिससे मन में मनुष्य की दुर्बलता का अनुभव होता और मनन-चिन्तन की अभिलाषा और एकान्तवास की इच्छा जागृत होती ।

यद्यपि वह नहीं जानते थे कि वह उस पहली परीक्षा से गुजर रहे हैं जिसे उनके लिए उनके अल्लाह ने निर्धारित किया है, और अल्लाह ने उन्हें अपना पैगम्बर चुना है और वही उस समय उनका शिक्षक, उनका पालनहार और उनका स्वामी था।

पहली परीक्षा

कुरआन मज़ीद में एक अनाथ के रूप में उनकी विशेष दशा को याद दिलाया गया है और मरुस्थल के जीवन में उन्हें जिन आध्यात्मिक शिक्षाओं को प्राप्त करने का अवसर दिया गया था उसे याद दिलाया गया है;

“क्या ऐसा नहीं कि उसने तुझे अनाथ पाया तो ठिकाना दिया । और तुम्हे मार्ग से अपरिचत पाया तो मार्ग दिखाया । और तुम्हें निर्धन पाया तो समुद्ध कर दिया । अतः जो अनाथ हो उसे मत दबाना; और जो माँगता हो उसे न झिड़कना,; और जो तुम्हारे पालनहार की उपकार है उसे बयान करते रहो”

(कुरआन 93:6-11)

कुरआन की इन आयतों में अनेक शिक्षाएँ हैं: भविष्य के पैगम्बर के लिए अनाथ और निर्धन होना वास्तव में पैग़म्बरी की प्रारम्भिक दीक्षा थी, इसके कम से कम दो कारण हैं ।

पहली शिक्षा वास्तव में वह दुर्बलता और विनम्रता थी जिसे उन्हें अपने प्रारम्भिक बचपन से ही प्राकृतिक रूप से अनुभव करना था ।

इस दयनीय दशा में उस समय और वृद्धि हो गयी जब आपकी माँ का देहान्त छः वर्ष की आयु में ही हो गया ।

इस दशा ने उन्हें पूर्णतः अल्लाह पर निर्भर छोड़ दिया। लेकिन उन्हें जनता के सर्वाधिक निर्धन लोगों से निकट भी कर दिया ।

कुरआन उन्हे याद दिलाता है कि दशा को उन्हें जीवनपर्यन्त कभी नहीं भूलना चाहिए और विशेष रूप से इस पैगम्बरी के अभियान में तो और भी नहीं भूलना चाहिए ।

आपको अनाथ और निर्धन कर दिया गया था इसीलिए आपको याद दिलाया गया और आपको आदेश दिया गया कि दुर्बल और कमज़ोर और निर्धनों को कभी न भूलें ।

पैगम्बरी के अनुभव के लिए आदर्श प्रकृति को देखते हुए इन आयतों से जो दूसरी आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त होती है वह प्रत्येक मनुष्य के लिए उपयुक्त है; किसी को अपने अतीत, अपनी परीक्षा की घड़ियों, अपने वातावरण और मूल को कभी नहीं भूलना चाहिए और अपने अनुभवों को अपने लिए और दूसरों के लिए सकारात्मक शिक्षा में परिवर्तित कर लेना चाहिए ।

अल्लाह उनको याद दिलाता है कि मुहम्मद (सल्ल0) का अतीत एक ऐसी पाठशाला है जिससे लाभप्रद व्यवहारिक और ठोस ज्ञान उन लोगों की भलाई के लिए प्राप्त करना चाहिए जिनके साथ जीवन की कठिनाईयों और निर्धनता का उन्होंने अनुभव किया था ।

क्योंकि वह स्वयं अपने अनुभव से किसी भी व्यक्ति से बेहतर जानते हैं कि वह लोग क्या महसूस करते हैं और क्या सहन करते है।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के पैग़म्बर बनने से पहले की नैतिक विशेषताएं

मरुस्थल का जीवन

आप (सल्ल0) को मरुस्थल का जीवन इसलिए प्रदान किया गया था कि सृष्टि के सम्बन्ध में और कायनात (ब्रह्माण्ड) के तत्वों के सम्बन्ध में मनुष्य के दृष्टिकोण को निर्मित किया जा सके ।

जब मुहम्मद (सल्ल0) मरुस्थल में आये तो वह बददू जीवन शैली से उनकी समृद्ध मौखिक परम्परा और बोलने वालों (अरब) के रूप में उनकी ख्याति, से बोल-चाल की भाषा में अपनी कुशलता विकसित की, क्योंकि भविष्य में अन्तिम पैग़म्बर को अपने शब्दों, अपनी धाराप्रवाह भाषा और अपने छोटे शब्द समूह के माध्यम से इस्लाम की सार्वजनिक शिक्षाओं को गम्भीरतापूर्वक प्रस्तुत करने की योग्यता उत्पन करना था।

मुहम्मद (सल्ल0) ने अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में प्रकृति के साथ अपने विशेष सम्बन्ध को विकसित किया प्रकृति के साथ सम्बन्ध उनके मिशन के साथ निरंतर जुड़ा रहा।

Muhammad (SAW) से जुड़े कुछ सवाल और उनके ज़वाब

  1. हज़रत मुहम्मद (सल्ल) कौन थे?

    हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला के बन्दे और अल्लाह के रसूल (Messenger) और पैग़म्बर (Prophet) थे। हम उन्ही के उम्मती हैं।

  2. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) कहाँ पैदा हुए थे?

    अरब देश के मक्का (Mecca, Saudi Arabia) नाम के शहर में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) पैदा हुए थे।

  3. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) के वालिद (Father) और दादा का क्या नाम था?

    आपके वालिद (पिताजी) का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम अब्दुल मुत्तलिब था।

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