इस्लाम में काफिर किसे कहते हैं | कुरान के अनुसार काफिर कौन है

kafir

Kafir (काफिर) शब्द के विरुद्ध आपत्तियां उठायी गयी हैं। मीडिया के कुछ वर्गों ने इसे विवादास्पद रूप में प्रस्तुत किया है मानो इसे मुसलमानों द्वारा गैर मुस्लिमों (खासकर हिंदुओं को) को गाली देने या उन्हें अपमानित करने के लिए प्रयोग किया जाता हो । इस शब्द और इसके निहितार्थों को गलत समझा गया है।

“काफ़िर” शब्द “हिन्दू” का पर्यायवाची शब्द नहीं है, इसका मूल अर्थ अकृतज्ञ है।

काफ़िर या कुफ्र शब्द इसके धातु शब्द “कुफ्र” से लिए गए हैं। कुफ्र का अर्थ कुछ ढकना या छिपाना होता है। रात को काफ़िर कहा जाता है क्योंकि यह रोशनी को छिपाती है। घने बादलों को भी काफ़िर कहा जाता है, क्योंकि वे चमकते हुए आसमान को और सूरज को छिपाते हैं। यहाँ तक कि किसान को भी काफ़िर कहा गया है क्योंकि वह खेत में बीज को छुपाता है।

काफ़िर या कुफ्र शब्द से नकारात्मक अर्थ जुड़े हुए नहीं हैं । अतः इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए । कुफ्र शब्द गैर मुस्लिम शब्द का विकल्प नहीं है और न तो सभी गैर मुस्लिम काफ़िर है।

धार्मिक शब्दावली में काफ़िर वह है जो किसी चीज़ को निरस्त करता है या स्वीकार करने से मना करता है। इस तरह एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के लिए काफ़िर होते हैं ।

साम्यवादी और पूँजीवादी दोनों एक-दूसरे के काफ़िर हैं। तथापि इस्लामी शब्दावली में जो कोई अल्लाह के अतिरिक्त किसी और उपास्य को मानने से इन्कार करता है वह ईमान वाला है । वास्तव में काफ़िर वह है जो इन्कार करता है लेकिन इसमें गाली देने का भाव नहीं है।

यह समझ लेना चाहिए कि अल्लाह ने धर्म के मामले में चुनाव की स्वतंत्रता प्रदान की है। कुरान  कहता हैः

“धर्म के विषय में कोई जबरदस्ती नहीं । सही बात नासमझी की बात से अलग
होकर स्पष्ट हो गई है। तो अब जो कोई बढ़े हुए सरकश को ठुकरा दे और
अल्लाह पर ईमान लाए, उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी
टूटने वाला नहीं । अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है ।”

(कुरान, 2:256)

अतः इस्लाम और मुसलमानों को यह अधिकार नहीं है कि उनको अपमानित करें जो एक अल्लाह और पैगम्बरों में विश्वास नहीं रखते ।

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