सूरह यूसुफ (12) हिंदी में | Surah Yusuf in Hindi

सूरह यूसुफ “Surah Yusuf”

कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:111 verses
पारा:12-13

नाम रखने का कारण

इस सूरह में पैग़म्बर यूसुफ (अलै.) का वृत्तान्त बयान हुआ है, इसी से इसका नाम यूसुफ रखा गया है।

अवतरणकाल और अवतरण

इस सूरह के विषय वस्तु से परिलक्षित होता है कि यह भी मक्का-निवासकाल के अंतिम काल-खण्ड में अवतरित हुई होगी, जब कुरैश के लोग इस समस्या पर विचार कर रहे थे कि नबी (सल्ल.) को कत्ल कर दें या निर्वासित कर दें या बंदी बना लें।

उस समय मक्का के काफिरों ने (संम्भवतः यहूदियों के इशारे पर) नबी (सल्ल.) की परीक्षा लेने के लिए आपसे प्रश्न किया कि बनी इसराईल (इसराईल की संतान) के मिस्र जाने का क्या कारण हुआ?

यह प्रश्न इसलिए पूछा गया क्योंकि वे जानते थे कि अरबों को उनकी कहानी के बारे में पता नहीं था क्योंकि उनकी परंपराओं में इसका कोई उल्लेख नहीं था। इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि वह इस सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाएंगे और इस तरह वह पूरी तरह से बेनकाब हो जाएंगे ।

अल्लाह ने न केवल तुरंत उसी समय हज़रत यूसुफ (अलै.) का यह पूरा किस्सा आपकी ज़बान पर जारी कर दिया, बल्कि तदाधिक इस किस्से और कुरैश के उस मामले के मध्य एकरूपता भी दिखा दी जो वे हज़रत यूसुफ (अलै.) के भाइयों की तरह नबी (सल्ल.) के साथ कर रहे थे।

अवतरण के उद्देश्य

इस तरह किस्सा दो महत्त्वपूर्ण उद्देश्य के लिए अवतरित किया गया था। एक यह कि मुहम्मद (सल्ल.) की नुबूवत (पैग़म्बरी) का प्रमाण और वह भी विरोधियों का अपना माँगा प्रमाण जुटाया जाए।

दूसरे यह कि कुरैश के सरदारों को बताया जाए कि आज तुम अपने भाई के साथ वही कुछ कर रहे हो जो यूसुफ (अलै.) के भाइयों ने उनके साथ किया था।

किन्तु जिस तरह वे ईश- इच्छा से लड़ने में सफल न हुए और अंततः उसी भाई के कदमों में आ रहे जिसको उन्होंने कभी अत्यधिक निर्दयता के साथ कुएं में फेंका था।

इसी तरह तुम्हारा शक्ति संघर्ष भी ईश्वरीय युक्ति के मुकाबले में सफल न हो सकेगा और एक दिन तुम्हें भी अपने इसी भाई से दया की भीख मांगनी पड़ेगी जिसे आज तुम मिटा देने पर तुले हुए हो ।

यह सच है कि यूसुफ (अलै.) के वृतांत को मुहम्मद (सल्ल.) और कुरैश के मामले पर घटित करके कुरआन मजीद ने मानो एक स्पष्ट भविष्यवाणी कर दी थी। जिसे आगामी दस वर्ष की घटनाओं ने अक्षरशः सत्य सिद्ध करके दिखा दिया।

वार्ताएँ एवं समस्याएँ

ये दो पहलू तो इस सूरह में उद्देश्य की हैसियत रखते हैं। इनके अतिरिक्त कुरआन मजीद इस समग्र वृत्तान्त में यह बात भी स्पष्ट रूप से दिखाता है कि हज़रत इबराहीम (अलै.) हज़रत इसहाक (अलै.), हज़रत याकूब (अलै.) और हज़रत यूसुफ (अलै.) का आमंत्रण भी वही था जो आज मुहम्मद (सल्ल.) दे रहे हैं।

फिर वह एक तरफ हज़रत याकूब (अलै) और हज़रत यूसुफ (अलै.) के चरित्र और दूसरी तरफ़ हज़रत यूसुफ (अलै.) के भाइयों, व्यापारियों के काफिले, मिस्र के अजीज (प्रमुख अधिकारी), उसकी पत्नी, मिस्र की कुलीन महिलाएँ और मिस्र के अधिकारियों के चरित्र को एक-दूसरे के मुकाबले में रख देता है ताकि लोग देख लें कि अल्लाह की बंदगी और आख़िरत (परलोक) के हिसाब में विश्वास से पैदा होने वाले चरित्र कैसे होते हैं। और संसारिकता और ईश्वर और परलोक से बेपरवाही के साँचों में ढल कर तैयार होने वाले चरित्रों का क्या हाल हुआ करता है।

फिर इस किस्से से कुरान एक और गहरे तथ्य को भी मानव के मन में बिठाता है और वह यह है कि अल्लाह जिसे उठाना चाहता है, सारी दुनिया मिल कर भी उसे नहीं गिरा सकती, बल्कि दुनिया जिस युक्ति को उसके गिराने की अत्यंत प्रभावकारी और अचूक युक्ति समझ कर अपनाती है, अल्लाह उसी युक्ति में से उसके उठने की शक्लें पैदा कर देता है।

Post a Comment