सूरह या सीन (36) हिंदी में | Surah Ya-Sin in Hindi


नाम रखने का कारण

आरम्भ के दोनों अक्षरों को इस सूरह का नाम ठहराया गया है।

कहाँ नाज़िल हुई:मक्का

आयतें:83 verses

पारा:22-23

अवतरणकाल

वर्णन-शैली पर विचार करने से महसूस होता है कि इस सूरह का अवरतणकाल या तो मक्का के मध्यकाल का अन्तिम चरण है या फिर यह मक्का निवास काल के अंतिम चरण की सूरतों में से है।

विषय और वार्ता

वार्ता का उद्देश्य कुरैश के काफिरों को मुहम्मद (सल्ल.) की पैग़म्बरी पर ईमान न लाने और अत्याचार एवं उपहास से उनका मुकाबला करने के परिणाम से डराना है। इसमें डराने का पहलू बढ़ा हुआ और स्पष्ट है। किन्तु बार-बार डराने के साथ तर्क द्वारा समझाया भी गया है। तर्क तीन बातों पर प्रस्तुत किया गया है :

एकेश्वरवाद पर जगत् में पाए जानेवाले लक्षणों और सामान्य बुद्धि से, परलोक में पर जगत् में पाए जानेवाले लक्षणों, सामान्य बुद्धि और स्वयं मानव के अपने अस्तित्व से और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की पैग़म्बरी की सत्यता पर इस बात से कि आप रिसालत के प्रचार में सारा कष्ट केवल निःस्वार्थ उठा रहे थे, और इस चीज़ से कि जिन बातों की ओर आप लोगों को बुला रहे थे, वे सर्वथा बुद्धिसंगत थीं।

इस तर्क के बल पर ताड़ना और भर्त्सना और चेतावनी की वार्ताएँ अत्यन्त ज़ोरदार ढंग से बार-बार प्रस्तुत की, ताकि दिलों के ताले टूटें और जिनमें सत्य स्वीकार करने की थोड़ी-सी क्षमता भी हो, वे प्रभावित हुए बिना न रह सकें।

इमाम अहमद, अबू दाऊद, नसई, इब्ने माजा और तबरानी आदि ने माकिल बिन यसार (रजि.) के द्वारा उल्लिखित किया है कि नबी (सल्ल.) ने कहा है कि यह सूरह कुरआन का हृदय है।

यह उसी प्रकार की उपमा है, जिस प्रकार सूरह फातिहा को उम्मुल कुरआन कहा गया है। फातिहा को उम्मुल कुरआन निर्धारित करने का कारण यह है कि उसमें कुरआन मजीद की समग्र शिक्षा का सारांश आ गया है।

सूरह या. सीन. को कुरआन का धड़कता हुआ हृदय इसलिए कहा गया है कि यह कुरआन के आह्वान को अत्यन्त ज़ोरदार तरीके से प्रस्तुत करती है, जिससे जड़ता टूटती है और आत्मा में स्पन्दन उत्पन्न होता है।

इन्हीं हज़रत माकिल बिन यसार (रजि.) से इमाम अहमद, अबू दाऊद और इब्ने माज़ा ने भी यह उल्लेख उद्धृत किया है कि नबी (सल्ल.) ने कहा, “अपने मरनेवालों पर सूरह या. सीन. पढ़ा करो ।”

इसमें मस्लहत यह है कि मरते समय मुसलमान के मन में न केवल यह कि सम्पूर्ण इस्लामी धारणाएँ ताज़ा हो जाएँ, बल्कि विशेष रूप से उसके सामने परलोक का पूरा चित्र भी आ जाए और वह जान ले कि संसारिक जीवन के पड़ाव से प्रस्थान करके अब आगे किन से मंज़िलों का उसे सामना करना है।

इस मस्लहत की पूर्ति के लिए उचित यह मालूम होता है कि ग़ैर अरबी भाषी व्यक्ति को सूरह या सीन. सुनाने के साथ उसका अनुवाद भी सुना दिया जाए, ताकि याददिहानी का हक़ पूरी तरह अदा हो जाए।

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