मस्जिद किसे कहते हैं?

वह जगह जो ख़ास नमाज पढ़ने के लिए बनायी जाती है और उसमें जमाअत से नमाज़ होती है उसे मस्जिद कहते हैंं।

पूरी दुनिया में नमाज़ प्रतिदिन पाँच बार हर मस्जिद मैं पढ़ी जाती है। एक मुसलमान से आशा की जाती है कि वह पाँच वक्‍त की नमाज़ मस्जिद मैं पढ़े।

इसका आदेश इसलिए दिया गया है कि लोगो के बीच सामाजिक बन्धन मजबूत किए जाएँ और ऐसा समाज विकसित किया जाए जिसमें लोग एक-दूसरे को जानते हों और एक-दूसरे के सुख-दुख और चिन्ताओं को साझा करते हों।

मुसलमान निर्धारित समय पर अल्लाह को याद करते हैं और नमाज पढ़ते हैं। चाहे वह कहीं भी हों ।

मस्जिद शान्ति और सौहार्द का प्रदर्शन करती है और यह एकत्ववाद (उपास्य की एकता) और मानव-बन्धुत्व का सन्देश देती है।

मस्जिद के अन्दर की कुछ विशेषताएँ

  • नमाज का हॉल: नमाज़ के लिए जो हॉल बनाया जाता है उसे मुसल्ला या कार्पेट एरिया कहते हैं। जहाँ लोग पंक्ति में नमाज़ पढ़ते हैं।
  • मेहराब: मेहराब मस्जिद की दीवार में एक अर्द्ध-गोलाकार स्थान होता है जो क़िबला की दिशा की ओर संकेत करता है अर्थात मक्का में स्थित काबा की दिशा । इस प्रकार यह वह दिशा है जिसकी ओर नमाज़ पढ़ते समय मुसलमानों को अपना चेहरा रखना चाहिए।
  • मिम्बर: मिम्बर मस्जिद में एक ऊँचा उठाया हुआ प्लेटफार्म होता है जहाँ इमाम खड़े होकर उपदेश देते हैं या जमाअत की (सामूहिक) नमाज में लोगों को सम्बोधित करते हैं । यह उपदेश साधारणत: शुक्रवार को दोपहर की नमाज़ में दिया जाता है, जब बड़ी जमाअत होती है।
  • वज़ू की सुविधाएँ: मस्जिदों में अक्सर वजू के लिए हौज़ या फव्वारे लगे होते हैं या धोने के लिए नलों की श्रृंखला होती है । नमाज़ से पहले मुसलमानों के लिए अपने आप को स्वच्छ करना होता है। इस स्वच्छता प्राप्त करने की प्रक्रिया को वज़ू कहा जाता है।
  • जिस हॉल में नमाज अदा की जाती है उसमें जूते पहनकर नहीं जाना चाहिए ।
  • बहुत सी अनेक मस्जिदों में भव्य गुम्बदें , मीनारें और नमाज़ के लिए हॉल होते हैं
  • मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए सामने कोई मूर्ति, आकृति, ऐतिहासिक अवशेष (पैगम्बर का) या कोई पवित्र पुस्तक नहीं रखी जाती।
  • न तो मस्जिद में कोई प्रवेश शुल्क लगता है और न ही मस्जिद में नमाज़ के लिए प्रवेश होने पर नारियल, मिठार्डयाँ, अगरबत्तियाँ या चादर आदि चढ़ाने की आवश्यकता होती हैं ।
  • मस्जिद एक ऐसे स्थान के रूप में काम करती है जहाँ मुसलमान नमाज़ के लिए एकत्र हो सकते हैं । इसके अतिरिक्त यह सूचना, शिक्षा और विवादों का समाधान करने के लिए एक केन्द्र होती है
  • सभी मुसलमान एक पंक्ति में खड़े होकर नमाज़ पढ़ते हैं । मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए किसी भी व्यक्ति के साथ विशेष वरीयतापूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता और किसी को सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक पद के कारण विशेष स्थान नहीं आवंटित किया जाता है।
  • नमाज़ का समय आसमान में सूरज की स्थिति के अनुसार निर्धारित किया जाता है। नमाज़ों के समय का कठोरता से पालन किया जाता है। किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए नमाज के समय को निर्धारित या बदला नहीं जा सकता ।
  • इमाम नमाज़ पढ़ाते हैं; मस्जिदों में पुरोहितवाद का पालन नहीं किया जाता । कोई भी आलिम या विद्वान व्यक्ति जिसके आचरण पर समाज के लोगों को भरोसा हो वह नमाज पढ़ा सकता है।
  • गैर मुस्लिमों को भी मस्जिद में आने की अनुमति दी जाती है।
  • जानवरों की कुर्बानी मस्जिद में नमाज़ का अंग नहीं है।
  • नशीले पेय पीने के बाद मस्जिद में प्रवेश वर्जित है यहाँ तक कि वह लोग जिन्होंने कच्चा लहसन या प्याज चबाया होता हो, उन्हें भी मस्जिद में प्रवेश से पहले अपना मुँह साफ करने का परामर्श दिया गया है।

मस्जिद में जाकर क्या करना चाहिए?

मस्जिद में नमाज़ पढ़े, क़ुरान शरीफ पढ़े, या और, कोई वजीफा पढ़े या अदब से चुप बैठे रहे। मस्जिद में खेलना, कूदना, शोर मचाना और दुनिया की बातें करना बुरी बात है।

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