क्या जानवरों को जिबह करने का इस्लामी तरीका क्रूरतापूर्ण है | Is the Islamic wayof Slaughtering Animals Cruel

अक्सर गैर-मुसलमानों से ये सवाल किया जाता है कि वह जानवरों को निर्दयता से धीरे-धीरे उनको कष्ट देकर क्यों ज़बह करते हैं?

जानवरों को ज़बह करने के इस्लामी तरीके पर जिसे ‘ज़िबह’ कहा जाता है, बहुत से लोगों ने आपत्ति की है। मुसलमान और यहूदी हलाल जानवरों को गर्दन के निचले हिस्से की ओर से धार्मिक रूप से ज़िबाह करने पर जोर देते हैं ।

यह तरीका जिबह किए हुए जानवर से पूरा खून बाहर निकालने में मददगार है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि मृत जानवर की खून की नलियों में खून जम नहीं पाता और इस तरह यह धार्मिक रूप से शुद्ध हो जाता है। जब यह जिबह मुसलमान करता है तो इसे हलाल कहा जाता है और यह स्वीकार्य भोजन का अंग है जिसे यहूदी भी खाते हैं।


इस्लाम और यहूदी धर्म जानवरों की गर्दन नीचे की ओर से काटने को कहते हैं और ऊपर से काटने को अवैध बताते हैं । इस तरीके से शरीर का सम्बन्ध जानवर के दिमाग से अचानक ही नहीं कट जाता ।

अतः दिमाग़ खून को बहने देता है और जानवर का शव खून-रहित हो जाता है। खून रहित मांस स्वास्थ्यवर्धक है और अधिक समय तक ताज़ा रहता है।

इस तरीके में साँस की नली और खून की नलियाँ काटी जाती है लेकिन पीछे की तंत्रिका अंतिम क्षण तक काम करती रहती है और खून की आखिरी बूँद शरीर से निकाल देती है।

जब जानवर पूरी तरह मर जाता है और शरीर शिथिल हो जाता है तब सिर उसके शरीर से अलग किया जाता है और मांस काटने की आगे की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

जानवर को ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा

जानवर को ज़बह करने के लिए अरबी शब्द “ज़क्कैतुम’ प्रयुक्त किया जाता है। जिस क्रिया से यह शब्द बना है उसका अर्थ है पवित्र करना और शुद्ध करना । इस्लामी तरीके से जानवर को ज़बह करने हेतु निम्न शर्तें पूरी करना आवश्यक है –

जानवर को तेज़ छुरी से ज़बह करना चाहिए ताकि उसे कम से कम पीड़ा हो।

जानवर को गले की तरफ़ से ज़बह करना चाहिए इस प्रकार कि हलक़ और गर्दन की खून वाली नसें कट जाये, मगर गर्दन के ऊपर का हिस्सा, जिसका संबंध रीढ़ की हड्डी से है, न कटे।

सिर कों अलग करने से पहले खून को पूर्ण रूप से बहने देना चाहिए क्योंकि उसमें जीवाणु होते हैं। अगर रीढ़ की हड्डी वाले हिस्से को जानवर के मरने से पहले काट दिया जाएगा तो इस स्थिति में सारा खून निकलने से पहले ही वह मर जाएगा और खून उसके मांस में जम जाएगा जिसके कारण मांस हानिकारक हो जाएगा ।

इस संबंध में हम निम्न बिन्दुओं पर विचार करते हैं जिनसे यह तथ्य सिद्ध होता है कि ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा मानवीय ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी श्रेष्ठ है –

खून कीटाणुओं और जीवाणुओं का स्रोत है

रक्त में कीटाणु, जीवाणु, विषाणु इत्यादि पाए जाते हैं, इसलिए ज़बह करने का इस्लामी तरीक्रा अधिक स्वच्छ होता है क्योंकि अधिकांश ख़ून जिसमें कीटाणु, जीवाणु इत्यादि पाए जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं, इस प्रक्रिया से बह जाते हैं।

खून को कीटाणुओं, जीवाणुओं और अन्य जहरीले तत्वों के पनपने का माध्यम माना जाता है। अतः ज़िबाह करने का मुसलमानों का तरीका ज़िबाह के अन्य तरीकों की तुलना में अधिक स्वस्थ, साफ सुथरा और जीवाणु मुक्त होता है। 

मांस लंबे समय तक ताज़ा रहता है

दूसरे ढंग की अपेक्षा इस्लामी ढंग से ज़बह किया हुआ मांस लंबे समय तक ताज़ा रहता है, क्योंकि मांस में खून कम मात्रा में होता है।

जानवर पीड़ा महसूस नहीं करते

गर्दन की नली को तेज़ी से काटने से मस्तिष्क नाड़ी की तरफ़ रक्त का बहाव बंद हो जाता है। यह नाड़ी पीड़ा का स्रोत है। अतः जानवर पीड़ा अनुभव नहीं करता । मरते समय जानवर संघर्ष करता है, कराहता है और लात मारता है ऐसा पीड़ा के कारण नहीं होता बल्कि शरीर से रक्त बह जाने के कारण पुट्ठों के सुकड़ने और फैलने से होता है।

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