सूरह जुमर (39) हिंदी में | Az-Zumar in Hindi


कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:75 verses
पारा:23-24

नाम रखने का कारण

इस सूरह का नाम आयत 71 और 73 “वे लोग जिन्होंने इन्कार किया था नरक की ओर गिरोह-के-गिरोह (जुमरा) हाँके जाएँगे” और “और जो लोग प्रभु की अवज्ञा से बचते थे उन्हें गिरोह के गिरोह (जुमरा) जन्नत की ओर ले जाया जाएगा” से उद्धृत है। मतलब यह है कि वह सूरह जिसमें ‘जुमर’ शब्द आया है।

अवतरणकाल

आयत 10 (और अल्लाह की धरती विशाल है) से इस बात की ओर स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह सूरह हबशा की हिजरत से पूर्व अवतरित हुई थी।

विषय और वार्ता

यह पूरी सूरह एक उत्तम और अत्यंत प्रभावकारी अभिभाषण है जो हबशा की हिजरत से पहले मक्का मुअज़्ज़मा के अत्याचार व हिंसा से परिपूर्ण वातावरण में दिया गया था।

इसका सम्बोधन अधिकतर कुरैश के काफिरों से है, यद्यपि कहीं-कहीं ईमानवालों को भी सम्बोधित किया गया है। इसमें हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के आह्वान का वास्तविक उद्देश्य बताया गया है और वह यह है कि मानव अल्लाह की विशुद्ध बन्दगी अपनाए और किसी दूसरे के आज्ञापालन और उपासना से अपनी ईशभक्ति को दूषित न करे।

इस गारभूत सिद्धान्त को बार-बार विभिन्न ढंग से प्रस्तुत करते हुए अत्यन्त ज़ोरदार तरीके से एकेश्वरवाद की सत्यता और उसे मानने के अच्छे परिणामों, और बहुदेववाद की त्रुटि और उसपर जमे रहने के दुष्परिणामों को स्पष्ट किया गया है और लोगों को आमंत्रित किया गया है कि वे अपनी ग़लत नीति को त्यागकर अपने प्रभु की दयालुता की ओर पलट आएँ, इस सिलसिले में ईमानवालों को आदेश दिया गया है कि यदि अल्लाह की बन्दगी के लिए एक स्थान तंग हो गया है तो उसकी धरती विशाल है। 

अपने धर्म रक्षा के लिए किसी और तरफ निकल खड़े हो, अल्लाह तुम्हारे धैर्य का प्रतिदान प्रदान करेगा। दूसरी तरफ नबी (सल्ल.) से कहा गया है कि इन काफिरों को इस ओर से बिल्कुल निराश कर दो कि उनका अत्याचार कभी तुम्हें इस राह से फेर सकेगा।

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