सूरह तारिक (86) हिंदी में | At-Taariq in Hindi


कहाँ नाज़िल हुई: मक्का

आयतें: 17 verses

पारा: 30

नाम रखने का कारण

पहली ही आयत के शब्द “अत्-तारिक” (रात को प्रकट होने वाला) को इसका नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

इसकी वार्ता की वर्णन-शैली मक्का मुअज्ज़मा की प्रारम्भिक सूरतों से मिलती-जुलती है, किन्तु यह उस समय की अवतरित सूरह है जब मक्का के काफिर कुरआन और मुहम्मद (सल्ल0) के आह्वान को क्षति पहुंचाने के लिए हर तरह की चालें चल रहे थे।

विषय और वार्ता

इसमें दो विषयों का उल्लेख किया गया है। एक, यह कि मनुष्य को मरने के पश्चात् ईश्वर के समक्ष उपस्थित होना है।

दूसरे, यह कि कुरआन एक निर्णायक सूक्ति है जिसे काफिरों की कोई चाल और उपाय क्षति नहीं पहुंचा सकती। सबसे पहले आकाश के तारों को इस बात की गवाही में सामने लाया गया है कि ब्रह्माण्ड की कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है कि जो सत्ता की देख-रेख के बिना अपनी जगह स्थिर और शेष रह सकती हो।

फिर मनुष्य को स्वयं उसकी अपनी ओर ध्यान दिलाया गया है कि किस तरह वीर्य की एक बून्द से उसे अस्तित्व में लाया गया और जीता-जागता मनुष्य बना दिया गया है और इसके बाद कहा गया है कि जो ईश्वर इस तरह उसे अस्तित्व में लाया है वह निश्चय ही उसको दोबारा पैदा करने की सामर्थ्य रखता है और यह दूसरी पैदाइश इस उद्देश्य के लिए होगी कि मनुष्य के उन सभी रहस्यों की जाँच पड़ताल की जाए जिन पर दुनिया में परदा पड़ा रह गया था।

वार्ता की समाप्ति पर कहा गया है कि जिस तरह आसमान से बारिश का बरसना और ज़मीन से वृक्षों और फसलों को उगना कोई खेल नहीं, बल्कि एक गम्भीर कार्य है उसी तरह कुरआन में जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, वे भी कोई हँसी-मज़ाकू नहीं हैं, बल्कि सुदृढ़ और अटल बातें हैं।

काफिर इस भ्रम में है कि उनकी चालें इस कुरआन के आह्वान को परास्त कर देंगी, किन्तु उन्हें ख़बर नहीं कि अल्लाह भी एक उपाय में लगा हुआ है और उसके उपाय के आगे काफिरों की चालें घरी की धरी रह जाएंगी।

फिर एक वाक्य में अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को यह सांत्वना और निहित रूप से काफिरों को यह धमकी दे कर बात समाप्त कर दी गई है कि आप तनिक धैर्य से काम लें और कुछ समय के लिए काफिरों को अपनी सी कर लेने दें, अधिक विलम्ब न होगा कि उन्हें स्वयं मालूम हो जाएगा कि उनका परिणाम क्या होता है।

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