सूरह नाज़िआत (79) हिंदी में | An-Naazi'aat in Hindi

सूरह नाज़िआत “An-Naazi’aat”
कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:46 verses
पारा:30

नाम रखने का कारण

सूरह का नाम सूरह के पहले ही शब्द “वन-नाज़िआत” (सौगन्ध है उनकी जो डूब कर खींचते हैं) से उद्धृत है।

अवतरणकाल

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि0) का बयान है कि यह सूरह, सूरह नवा के पश्चात् अवतरित हुई है। इसका विषय भी यही बता रहा है कि यह आरम्भिक काल की सूरतों में से है।

विषय और वार्ता

इसका विषय कयामत और मृत्यु के पश्चात् के जीवन की पुष्टि है और साथ-साथ इस बात की चेतावनी भी कि अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को झुठलाने का परिणाम क्या होता है।

वार्ता के आरम्भ में मृत्यु के समय प्राण निकालने वाले और अल्लाह के आदेश का बिना किसी विलम्ब के पालन करने वाले और ईश्वरीय आदेशों के अनुसार सम्पूर्ण जगत् का प्रबन्ध करने वाले फरिश्तों की कसम खा कर यह विश्वास दिलाया गया है कि कयामत अवश्य घटित होगी और मृत्यु के पश्चात् दूसरा जीवन अवश्य सामने आ कर रहेगा। 

क्योंकि जिन फरिश्तों के हाथों आज प्राण निकाले जाते हैं, उन्हीं के हाथों पुनः प्राण डाले भी जा सकते हैं और जो फरिश्ते आज अल्लाह के आदेश का पालन बिना किसी विलम्ब के करते और जगत् का प्रबन्ध करते हैं, वही फरिश्ते कल उसी ईश्वर के आदेश से जगत् की वर्तमान व्यवस्था को छिन्न-भिन्न भी कर सकते हैं और एक अन्य व्यवस्था की स्थापना भी कर सकते हैं।

इसके बाद लोगों को बताया गया है कि यह कार्य ऐसा नहीं है जिसके लिए किसी बड़ी तैयारी की आवश्यकता हो। बस एक झटका संसार की इस व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देगा और एक दूसरा झटका इसके लिए बिल्कुल पर्याप्त होगा कि दूसरे लोक में सहसा तुम अपने आपको जीवित उपस्थित पाओ।

फिर हज़रत मूसा (अलै0) और फिरऔन का किस्सा संक्षिप्त रूप से वर्णित कर के लोगों को सावधान किया गया है कि रसूल को झुठलाने और चालबाजियों से उसको पराजित करने के प्रयास का क्या परिणाम फ़िरऔन देख चुका है।

उससे शिक्षा ग्रहण करके इस नीति से बाज़ न आओगे तो वही परिणाम तुम्हें भी देखना पड़ेगा। तदान्तर आयत 27 से 33 तक परलोक और मृत्यु के बाद के जीवन के प्रमाणों का उल्लेख किया गया है।

आयत 34 से 41 तक में यह बताया गया है कि जब परलोक की स्थापना होगी तो मानव के सार्वकालिक और शाश्वत भविष्य का निर्णय इस आधार पर होगा कि किसने दुनिया में दासता की सीमा का अतिक्रमण कर के अपने ईश्वर से विद्रोह किया और दुनिया ही के लाभों और आस्वादनों को उद्देश्य बना लिया और किसने अपने प्रभु के सामने खड़े होने का भय रखा और कौन मन की अवैध इच्छाओं को पूरा करने से बच कर रहा।

अंत में मक्का के काफिरों के इस प्रश्न का जवाब दिया गया है कि वह कुयामत आएगी कब ? उत्तर में कहा गया है कि उसके समय का ज्ञान अल्लाह के सिवा किसी को नहीं है।

रसूल का कार्य केवल सचेत कर देना है कि वह समय आएगा अवश्य । अब जिसका जी चाहे उसके आने का भय रख कर अपनी नीति ठीक कर ले और जिसका जी चाहे निर्भय हो कर बे-नकेल के ऊँट की तरह चलता रहे।

जब वह समय आ जाएगा तो वही लोग जो इस संसारिक जीवन पर मर मिटते थे और उसी को सब कुछ समझते थे, उन्हें यह आभास होगा कि संसार में वे मात्र घड़ी-भर ठहरे थे। उस समय उन्हें ज्ञात होगा कि इस अल्पकालिक जीवन के लिए उन्होंने किस तरह सदैव के लिए अपना भविष्य बिगाड़ लिया।

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