सूरह कहफ (18) हिंदी में | Al-Kahf in Hindi

सूरह कहफ “Al-Kahf”

कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:110 verses
पारा:15-16

नाम रखने का कारण

इस सूरह का नाम सूरह की 9वीं आयत “जब उन कुछ नवयुवकों ने गुफा (कहफ) में शरण ली” से उद्धृत है। इस नाम का अर्थ यह है कि वह सूरह जिसमें कफ् (गुफा) का शब्द आया है।

अवतरणकाल

यहाँ से उन सूरतों का शुभारम्भ होता है जो मक्की जीवन के तीसरे कालखण्ड में अवतरित हुई हैं। इस काल में कुरैश ने नबी (सल्ल.) और आपके आन्दोलन और दल को दबाने के लिए उपहास, हँसी, आक्षेपों, आरोपों, डरावा, प्रलोभन और विरोधात्मक प्रोपेगेंडा से आगे बढ़कर अत्याचार, मारपीट और आर्थिक दबाव के हथियार पूरी कठोरता के साथ इस्तेमाल किए।

सूरह कहफ के विषय-वस्तु पर विचार करने से अनुमान होता है कि यह तीसरे कालखण्ड के आरम्भ में अवतरित हुई होगी, जबकि अत्याचार और विरोध ने उग्र रूप धारण कर लिया था, किन्तु अभी हबशा (अबीसीनिया) की हिजरत पेश नहीं आई थी।

उस समय जो मुसलमान सताए जा रहे थे उनको गुफा वालों का किस्सा सुनाया गया ताकि उनकी हिम्मत बँधे और उन्हें मालूम हो कि ईमान वालो अपना ईमान बचाने के लिए इससे पहले क्या कुछ कर चुके हैं।

शीर्षक और वार्तावस्तु

यह सूरह मक्का के बहुदेववादियों के तीन प्रश्नों के उत्तर में अवतरित हुई है, जो उन्होंने नबी (सल्ल.) की परीक्षा लेने के लिए किताब वालों के परामर्श से आपके सामने रखे थे :

  • गुफावाले कौन थे?
  • ख़िज़्र की कथा की वास्तविकता क्या है?
  • जुलक़रनैन का क्या किस्सा है?

ये तीनों किस्से ईसाईयों और यहूदियों के इतिहास से सम्बन्ध रखते हैं। हिजाज़ में इनकी कोई चर्चा न थी। किन्तु अल्लाह ने केवल यही नहीं कि अपने नबी (सल्ल.) के मुख से उनके प्रश्नों का पूरा उत्तर दिया, बल्कि उनके अपने पूछे हुए तीनों किस्सों को पूर्ण रूप से उस परिस्थिति पर घटित करके दिखा भी दिया, जो उस समय मक्का में कुफ्र और इस्लाम के मध्य पैदा हो गई थी।

वार्ता के अंत में फिर उन्हीं बातों को दोहरा दिया गया है जो वार्ता के आरम्भ में बयान हुई हैं अर्थात् यह कि एकेश्वरवाद और परलोक सर्वथा सत्य है और तुम्हारी अपनी भलाई इसी में है कि इन्हें मानो।

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