सूरह जासिया (45) हिंदी में | Al-Jaathiyah in Hindi

सूरह जासिया “Al-Jaathiyah”

कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:37 verses
पारा:25

नाम रखने का कारण

आयत 28 के वाक्यांश “उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा (जासिया) देखोगे,” से उद्धृत है। मतलब यह है कि यह वह सूरह है जिसमें जासिया शब्द आया है।

अवतरणकाल

इसकी विषय वस्तुओं से साफ महसूस होता है कि यह सूरह 44 (दुखान) के बाद निकटवर्ती समय में अवतरित हुई है। दोनों सूरतों की विषय-वस्तुओं में ऐसी एकरूपता पाई जाती है, जिससे ये दोनों जुड़वाँ सूरतें प्रतीत होती हैं।

विषय और वार्ताएँ

इसका विषय एकेश्वरवाद और परलोकवाद के सम्बन्ध में मक्का के काफिरों के सन्देहों और आक्षेपों का उत्तर देना और (उनकी विरोधात्मक) नीति पर उन्हें सचेत करना है।

वार्ता का आरम्भ एकेश्वरवाद के प्रमाणों से किया गया है। इस सिलसिले में मनुष्य के अपने अस्तित्व से लेकर धरती और आकाश तक की फैली हुई अगणित निशानियों की ओर संकेत करके बताया गया है कि तुम जिधर भी निगाह उठाकर देखो, हर चीज़ उसी एकेश्वरवाद की गवाही दे रही है जिसे मानने से तुम इन्कार कर रहे हो।

आगे चलकर आयत 12-13 में फिर कहा गया है कि मनुष्य इस संसार में जितनी चीज़ों से काम ले रहा है और जो अगणित चीजें और शक्तियाँ इस जगत् में उसके हित में सेवारत हैं (वे सबकी-सब एक ख़ुदा की प्रदान की हुई और कार्य में लगाई हुई हैं।)

कोई व्यक्ति ठीक सोच-विचार से काम ले तो उसकी अपनी बुद्धि ही पुकार उठेगी कि वही अल्लाह इन्सान का उपकारकर्ता और उसी का यह हक़ है कि मनुष्य उसका आभारी हो।

तदान्तर मक्का के काफ़िरों को उस हठधर्मी, अहंकार, उपहास और कुछ के लिए दुराग्रह परीक्षण भर्त्सना की गई है, जिससे वे कुरआन के आह्वान का मुकाबला कर रहे थे।

उन्हें सचेत किया गया है कि यह कुरआन (एक महान वरदान है। इसे रद्द कर देने का परिणाम अत्यन्त विनाशकारी होगा) इसी सिलसिले में अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के अनुयायियों को आदेश दिया गया है कि यह ईश्वर से निर्भय लोग तुम्हारे साथ जो बेहूदगियाँ कर रहे हैं, उनपर क्षमा और सहनशीलता से काम लो।

तुम धैर्य से काम लोगे तो ईश्वर स्वयं इनसे निपटेगा और तुम्हें इस धैर्य का बदला प्रदान करेगा। फिर परलोकवाद की धारणा के सम्बन्ध में काफिरों के अज्ञानपूर्ण विचारों की समीक्षा की गई है। (और उनके इस दावे के खण्डन में कि मरने के) बाद फिर कोई जीवन नहीं है, अल्लाह ने निरन्तर कुछ प्रमाण प्रस्तुत किए हैं।

ये प्रमाण देने के पश्चात् अल्लाह पूरे ज़ोर के साथ कहता है कि जिस तरह तुम आप-से-आप जीवित नहीं हो गए हो, बल्कि हमारे जीवित करने से जीवित हुए हो।

इसी तरह तुम आप-से-आप नहीं मर जाते, बल्कि हमारे मौत देने से मरते हो और एक समय निश्चित ही ऐसा आना है जब तुम सब एक वक्त एकत्र किए जाओगे।

जब वह वक्त आ जाएगा तो तुम स्वयं ही अपनी आँखों से देख लोगे कि अपने ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत हो और तुम्हारा सम्पूर्ण कर्मपत्र बिना कमीबेशी के तैयार है, जो तुम्हारे एक-एक करतूत की गवाही दे रहा है।

उस समय तुमको मालूम हो जाएगा कि परलोकवाद की धारणा का यह इन्कार और उसका जो उपहास तुम कर रहे हो, तुम्हें कितना अधिक महँगा पड़ा है।

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