सूरह शरह (94) हिंदी में | Al-Inshirah in Hindi

सूरह शरह “Al-Inshirah”
कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:8 verses
पारा:30

नाम रखने का कारण

सूरह का नाम पहले ही वाक्य से उद्धृत है।

अतवरणकाल

इसका विषय सूरह 93 (अज़-जुहा) से इतना अधिक मिलता-जुलता है कि ये दोनों सूरतें लगभग एक ही काल और एक जैसी परिस्थितियों में अवतरित प्रतीत होती हैं।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि0) कहते हैं कि यह मक्का मुअज्ज़मा में ‘अज़-जुहा’ के बाद अवतरित हुई है। इसका उद्देश्य और आशय भी अल्लाह के रसूल नुबूवत (सल्ल0) को सान्त्वना देना है।

इस्लामी आह्वान का प्रारम्भ करते ही अचानक आपको जिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा उन का कोई अनुमान आप को से पहले के जीवन में न था।

इस्लाम के प्रचार एवं प्रसार का कार्य आप ने आरम्भ किया कि देखते-देखतेवही समाज आप का दुश्मन हो गया जिसमें आप पहले बड़े आदर की निगाह से देखे जाते थे। यद्यपि शैनःशैनः आप को इन परिस्थितियों का मुकाबला करने की आदत पड़ गई।

लेकिन प्रारम्भिक काल आप के लिए अत्यन्त हृदय विदारक था। इसी लिए आप को सान्त्वना देने के लिए पहले सूरह 93 (अज़-जुहा) अवतरित की गई और फिर इस सूरह का अवतरण हुआ।

इसमें अल्लाह ने सबसे पहले बताया है कि हम ने आप को तीन बहुत अनमोल चीजें प्रदान की हैं, जिनके होते हुए कोई कारण नहीं कि आप दुखी एवं निराश हों।

एक, अनमोल देन है सीने का खुल जाना। दूसरी, यह कि आप के ऊपर से हम ने वह भारी बोझ उतार दिया जो नुबूवत से पहले आप की कमर तोड़े डाल रहा था। तीसरी, आप की चर्चा की उच्चता एवं अधिकता।

इसके बाद जगत प्रभु ने अपने बन्दे और रसूल (सल्ल0) को यह सान्त्वना दी है कि कठिनाइयों का यह काल खण्ड जिसका आप को सामना करना पड़ रहा है, कोई बहुत दीर्घ काल खण्ड नहीं है बल्कि इस तंगी के साथ कुशादगी का कालखण्ड भी लगा चला आ रहा है।

वही बात है जो सूरह 93 (अज़-जुहा) (की चौथी और पाँचवीं आयतों में कही गई थीं।) अन्त में नबी (सल्ल0) को निर्देश दिया गया है कि प्रारम्भिक काल की इन कठिनाइयों का मुकाबला करने की शक्ति एक ही चीज़ से पैदा होगी, और वह यह है कि जब अपनी व्यस्तताओं से आप निवृत हों तो उपासना की मशक्कत और साधना में लग जाएं और हर चीज़ से बेपरवाह हो कर अपने प्रभु से लौ लगाएं।

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