सूरह हुजरात (49) हिंदी में | Al-Hujuraat in Hindi

सूरह हुजरात “Al-Hujuraat”

कहाँ नाज़िल हुई:मदीना
आयतें:18 verses
पारा:26

नाम रखने का कारण

आयत 4 के वाक्यांश “जो लोग तुम्हें कमरों (हुजुरात) के बाहर से पुकारते हैं” उद्धृत । आशय यह है कि वह सूरह जिसमें अल-हुजुरात शब्द आया है।

अवतरणकाल

यह बात उल्लेखों से भी ज्ञात होती है और सूरह की वार्ताओं से भी इसकी पुष्टि होती है कि यह सूरह विभिन्न अवसरों पर अवतरित आदेशों और निर्देशों का संग्रह है, जिन्हें विषय की अनुकूलता के कारण एकत्र कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त उल्लेखों से यह भी मालूम होता है कि इसमें से अधिकतर आदेश मदीना तैयबा के अन्तिम समय में अवतरित हुए हैं।

विषय और वार्ताएँ

इस सूरह का विषय मुसलमानों को उन शिष्ट नियमों की शिक्षा देना है जो ईमानवालों के गौरव के अनुकूल हैं। आरम्भिक पाँच आयतों में उनको वह नियम सिखाया गया है जिसका उन्हें अल्लाह और उसके रसूल के मामले में ध्यान रखना चाहिए।

फिर यह आदेश दिया गया है कि यदि किसी व्यक्ति या गिरोह या कौम के विरुद्ध कोई सूचना मिले तो ध्यान से देखना चाहिए कि सूचना मिलने का माध्यम विश्वसनीय है या नहीं।

भरोसे के योग्य न हो तो उसपर कार्रवाई करने से पहले जाँच पड़ताल कर लेनी चाहिए कि सूचना सही हैं या नहीं, तदान्तर यह बताया गया कि यदि किसी समय मुसलमानों के दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें तो इस स्थिति में अन्य मुसलमानों को क्या नीति अपनानी चाहिए।

फिर मुसलमानों को उन बुराइयों से बचने की ताकीद की गई है जो सामाजिक जीवन में बिगाड़ पैदा करती हैं और जिनके कारण आपस के सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं। इसके बाद उन जातीय और वंशगत भेदभाव पर चोट की गई है जो संसार में व्यापक बिगाड़ के कारण बनते हैं।

(इस सिलसिले में) सर्वोच्च अल्लाह ने यह कहकर इस बुराई की जड़ काट दी है कि समस्त मानव एक ही मूल से पैदा हुए हैं और जातियों और क़बीलों में इनका विभक्त होना परिचय के लिए है न कि आपस में गर्व के लिए। और एक मनुष्य पर दूसरे मनुष्य की श्रेष्ठता के लिए नैतिक श्रेष्ठता के सिवा और कोई वैध आधार नहीं ।

अन्त में लोगों को बताया गया है कि मौलिक चीज़ ईमान का मौखिक दावा नहीं है, बल्कि सच्चे दिल से अल्लाह और उसके रसूल को मानना, व्यवहारतः आज्ञाकरी बनकर रहना और शुद्ध हृदयता के साथ अल्लाह की राह में अपनी जान और माल खपा देना है।

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