सूरह हश्र (59) हिंदी में | Al-Hashr in Hindi


कहाँ नाज़िल हुई: मदीना
आयतें:24 verses
पारा:28

नाम रखने का कारण

दूसरी आयत के वाक्यांश “जिसने किताब वाले काफिरों को पहले ही हल्ले (हश्र) में उनके घरों से निकाल बाहर किया” से उद्धृत है। अभिप्राय यह है कि यह वह सूरह है जिसमें अल्-हश्र शब्द आया है।

अवतरणकाल

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि०) (कहते हैं कि सूरह हथ) बनी नज़ीर के अभियान के विषय में अवतरित हुई थी, जिस तरह सूरह 8 (अनफाल) बद्र के युद्ध के विषय में अवतरित हुई थी।

विषय और वार्ताएँ

सूरह का विषय जैसा कि ऊपर बयान हुए, बनी नज़ीर के अभियान की समीक्षा है। इसमें सामूहिक रूप से चार विषय वर्णित हुए हैं:

(1) पहली चार आयतों में दुनिया को उस परिणाम से शिक्षा दिलाई गई है, जो अभी-अभी बनी नज़ीर ने देखा था। अल्लाह ने बताया है कि (बनी नज़ीर का यह निर्वासन स्वीकार कर लेना) मुसलमानों की शक्ति का चमत्कार नहीं था, बल्कि इस बात का परिणाम था कि वे अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल0) से लड़ गए थे और जो लोग अल्लाह की ताकत से टकराने का दुस्साहस करें, उन्हें ऐसे ही परिणाम का सामना करना पड़ता है।

(2) आयत 5 में युद्ध के कानून का यह नियम बताया गया है कि युद्ध-संबंधी आवश्यकताओं के लिए शत्रु क्षेत्र में जो ध्वंसात्मक कार्रवाई की जाए उसे धरती में बिगाड़ दिदा करने का नाम नहीं दिया जाता।

(3) आयत 6 से 10 तक यह बताया गया है कि उन देशों की ज़मीनों और सम्पत्तियों का प्रबन्ध किस तरह किया जाए जो युद्ध या सन्धि के परिणाम स्वरूप इस्लामी राज्य के अधीन हो जाएं।

(4) आयत 11 से 17 तक कपटाचारियों की उस नीति की समीक्षा की गई है जो उन्होंने बनी नज़ीर के अभियान के अवसर पर अपनाई थी।

(5) आयत 18 से सूरह के अन्त तक पूरा का पूरा एक उपदेश है जिसका सम्बोधन उन सभी लोगों से है जो ईमान का दावा करके मुसलमानों के गिरोह में शामिल हो गए हों, किन्तु ईमान के वास्तविक भाव से वंचित रहें। इसमें उनको बताया गया है कि वास्तव में ईमान की अपेक्षा क्या है।

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