सूरह अंबिया 21 हिंदी में | Al-Anbiya in Hindi


कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:112 verses
पारा:17

नाम रखने का कारण

क्योंकि इस सूरह में निरन्तर बहुत-से नबियों (अंबिया) का उल्लेख हुआ है, इसलिए इसका नाम अल-अंबिया रख दिया गया। यह विषय-वस्तु की दृष्टि से सूरह का शीर्षक नहीं है, बल्कि केवल पहचानने के लिए एह लक्षण मात्र है।

अवतरणकाल

विषय-वस्तु और शैली दोनों से ही यह मालूम होता है कि इसका अवतरणकाल मक्का का मध्यकाल अर्थात हमारे काल विभाजन की दृष्टि से नबी (सल्ल.) के मक्की जीवन का तीसरा कालखण्ड है।

विषय और वार्ता

इस सूरह में उस संघर्ष पर वार्तालाप किया गया है जो नबी (सल्ल.) और कुरैश के सरदारों के बीच चल रहा था। वे लोग नबी (सल्ल.) की रिसालत की उद्घोषणा और एकेश्वरवाद और परलोकवाद से सम्बद्ध आपके आमंत्रण पर जो संदेह और आक्षेप करते थे उनका उत्तर दिया गया है।

उनकी ओर से आपके विरोध में जो चालें चली जा रही थीं, उन पर ताड़ना की गई है और उन गतिविधियों के बुरे परिणामों से सावधान किया गया है और अंत में उनको यह एहसास दिलाया गया है कि जिस व्यक्ति को तुम अपने लिए कष्टकारी और आपदा समझ रहे हो वह वास्तव में तुम्हारे लिए सर्वथा दयालुता बनकर आया है।

अभिभाषण के मध्य में विशेष रूप से जिन बातों पर वार्तालाप किया गया है वे ये है:

(1) मक्का के काफिरों के इस भ्रम को कि मनुष्य कभी रसूल नहीं हो सकता और इस आधार पर उनका नबी (सल्ल.) को रसूल (पैग़म्बर) मानने से इन्कार करना-इसकी विस्तारपूर्वक खण्डन किया गया है।

(2) उनका आप पर और कुरआन पर विभिन्न और विरोधाभासी आक्षेप करना और किसी एक बात पर न जमना- इसपर संक्षिप्त किन्तु अत्यंत ज़ोरदार अर्थ जनक रीति से पकड़ की गई है।

(3) उनकी यह घोषणा कि जीवन मात्र एक खेल हैं जिसे कुछ थोड़े दिन खेलकर यूं ही समाप्त हो जाना है (इसका कोई हिसाब-किताब नहीं) इनका बड़े ही प्रभावकारी ढंग से तोड़ किया गया है।

(4) बहुदेववाद पर उनका हठ और एकेश्वरवाद के विरुद्ध उनका अज्ञानपूर्ण पक्षपात-इसके सुधार के लिए संक्षिप्त किन्तु वज़नदार और दिल में घर करने वाले प्रमाण दिए हैं।

(5) उनके इस भ्रम को कि नबी को बार-बार झुठलाने पर भी जब उन पर कोई यातना नहीं आती तो अवश्य ही नबी झूठा है और ईश्वरीय यातना की धमकियाँ मात्र धमकियाँ हैं इसको तार्किक और उपदेशात्मक दोनों तरीकों से दूर करने की कोशिश की गई है।

इसके पश्चात् नबियों (अलै) के जीवन चरित्र की महत्वपूर्ण घटनाओं से कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं, जिनसे यह समझाना अभीष्ट है कि वे सभी पैग़म्बर जो मानव इतिहास में ख़ुदा की ओर से आए थे, मनुष्य थे, ईश्वरत्व और प्रभुता का अंश उनमें लेशमात्र भी न था।

इसके साथ उन्हें ऐतिहासिक उदाहरणों से दो बातें स्पष्ट की गई हैं। एक यह कि नबियों पर तरह-तरह की मुसीबतें आई हैं और उनके विरोधियों ने भी उन्हें तबाह करने की कोशिश की है, किन्तु अल्लाह की ओर से असाधारण रीतियों से उनकी सहायता की गई हैं।

दूसरे यह कि सभी नबियों का धर्म एक था और वह वही धर्म था, जिसे मुहम्मद (सल्ल.) प्रस्तुत कर रहे हैं। मानव जाति का वास्तविक धर्म यही है, और शेष जितने धर्म दुनिया में बने हैं वे केवल पथभ्रष्ट मनुष्यों की डाली हुई फूट हैं।

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