सूरह आला (87) हिंदी में | Al-A'laa in Hindi


कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:19 verses
पारा:30

नाम रखने का कारण

पहली ही आयत “सब्बिहिस म रब्बिकल आला” (अपने सर्वोच्च रब के की तस्बीह करो) के शब्द ‘अल्-आला’ (सर्वोच्च) को इस सूरह का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

इसकी वार्ता से भी मालूम होता है कि यह बिल्कुल आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है और आयत नम्बर 6 के ये शब्द भी कि “हम तुम्हें पढ़ा देंगे, फिर तुम नहीं भूलोगे” यह कहते हैं कि यह उस कालखण्ड में अवतरित हुई दी जब अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को अभी वह्य (प्रकाशना) ग्रहण करने का अच्छी तरह अभ्यास नहीं हुआ था और वह्यी के अवतरण के समय आपको आशंका होती थी कि कहीं मैं उसके शब्द भूल न जाऊँ ।

विषय और वार्ता

इस छोटी-सी सूरह के तीन विषय हैं: एकेश्वरवाद, नबी (सल्ल0) को निर्देश और परलोक। पहली ही आयत में एकेश्वरवाद की शिक्षा को इस एक वाक्य में समेट दिया गया है कि अल्लाह के नाम की तस्बीह की जाए, अर्थात् उसको किसी ऐसे नाम से याद न किया जाए जो अपने में किसी प्रकार की कमी, दोष, दुर्बलता या सृष्ट प्राणियों के समरूप होने का कोई पहलू रखता हो, क्योंकि दुनिया में जितनी भी विकृत धारणाएं पैदा हुई हैं, उन सबके मूल में अल्लाह के सम्बन्ध में कोई न कोई ग़लत धारणा मौजूद है, जिसने उस पवित्र सत्ता के लिए किसी गलत नाम का रूप धारण किया है।

अतः धारणा के विशुद्धीकरण के लिए सबसे पहली चीज़ यह है कि प्रतापवान अल्लाह को केवल उन अच्छे नामों ही से याद किया जाए जो उसके लिए अनुकूल और उचित हैं।

इसके बाद तीन आयतों में बताया गया है कि तुम्हारा रब, जिसके नाम की तस्बीह का हुक्म दिया जा रहा है वह है जिसने जगत् की हर चीज़ को पैदा किया, उसका संतुलन स्थिर किया, उसकी तक़दीर बनाई, उसे वह कार्य पूरा करने की राह बताई जिसके लिए वह पैदा की गई है।

फिर दो आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को आदेश दिया गया है कि आप इस चिन्ता में न पड़ें कि यह कुरआन शब्दशः आपको याद कैसे रहेगा।

इसको आपकी स्मृति में सुरक्षित कर देना हमार है और इसका सुरक्षित रहना आपके किसी व्यक्तिगत कौशल का परिणाम नहीं, बल्कि हमारी उदार कृपा का परिणाम है, अन्यथा हम चाहें तो इसे भुलवा दें।

तदान्तर अल्लाह के रसूल (सल्ल0) से कहा गया है कि आपको हर व्यक्ति को सीधे मार्ग पर लाने का काम नहीं सौंपा गया है, बल्कि आपका काम बस सत्य को पहुंचा देना है और पहुंचाने का सीधा-सीधा तरीका यह है कि जो ओदश को सुनने और स्वीकार करने के लिए तैयार हो उसे उपदेश दिया जाए और जो इसके लिए तैयार न हो उसके पीछे न पड़ा जाए।

अन्त में वार्ता इस बात पर समाप्त हो गई है कि सफलता केवल उन लोगों के लिए है जो धारणा, नैतिकता और कर्मों की पवित्रता ग्रहण करें और अपने प्रभु का नाम याद कर के नमाज़ पढ़ें। लेकिन लोगों का हाल यह है कि उन्हें सारी चिन्ता बस इसी दुनिया की है, हालांकि वास्तविक चिन्ता आख़िरत (परलोक) की होनी चाहिए।



Post a Comment