सूरह अहज़ाब (33) हिंदी में | Al-Ahzaab in Hindi


कहाँ नाज़िल हुई:मदीना
आयतें:73 verses
पारा:21-22

नाम रखने का कारण

आयत 20 के वाक्यांश, “ये समझ रहे हैं कि आक्रमणकारी गिरोह (अल-अहज़ाब) अभी गए नहीं हैं” से उद्धृत है

अवतरणकाल

इस सूरह के विषय का सम्बन्ध तीन महत्वपूर्ण घटनाओं से है। एक, अहज़ाब का अभियान जिसका सम्बन्ध शव्वाल सन् 5 हिजरी से है।

दूसरे, बनी कुरैज़ा का अभियान जो ज़ी-क़ादा सन् 5 हिजरी से सम्बन्ध रखता है।

तीसरे हज़रत ज़ैनब (रजि.) से नबी (सल्ल.) का विवाह, जो इसी वर्ष ज़ी-कादा में हुआ।

इन ऐतिहासिक घटनाओं से सूरह का अवतरणकाल ठीक-ठीक निश्चित हो जाता है। (और यही घटनाएँ इस सूरह की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी हैं।)

सामाजिक सुधार

उहद के युद्ध और अहज़ाब के अभियान के मध्य दो वर्ष का समय यद्यपि ऐसी अशांति और उपद्रवों का था, जिनके कारण नबी (सल्ल.) और आपके साथियों को एक दिन के लिए भी शांति और निश्चिन्तता प्राप्त न हुई।

किन्तु इस पूरी अवधि में नवीन मुस्लिम समाज के निर्माण और हर पहलू में जीवन के सुधार का काम बराबर चलता रहा। यही समय था जिसमें मुसलमानों के विवाह और तलाक के कानून लगभग पूर्ण हो गए, विरासत का कानून बना, शराब और जुए को अवैध किया गया, (परदे के आदेश अवतरित होने आरम्भ हुए) और अर्थव्यवस्था व सामाजिकता और समाज के दूसरे बहुत से पहलुओं में नए नियम लागू किए गए।

विषय और वार्ताएँ

यह पूरी सूरह एक अभिभाषण नहीं है जो एक ही समय में अवतरित हुआ हो, बल्कि विभिन्न आदेशों और अभिभाषणों पर आधारित है। इसके निम्नलिखित अंश स्पष्टतः श्रेणीबद्ध दिखाई देते हैं।

1) आयत नम्बर 1 से 8 तक का भाग अहज़ाब अभियान से कुछ पहले का अवतरित मालूम होता है। इसके अवतरण के समय हज़रत जैद (रजि.) हज़रत ज़ैनब (रजि.) को तलाक दे चुके थे।

नबी (सल्ल.) इस ज़रूरत को महसूस कर रहे थे कि मुँह बोले बेटे के विषय में अज्ञानकाल की धारणाओं को मिटाने के लिए हज़रत ज़ैनब (रज़ि.) से स्वयं विवाह कर लें) लेकिन इसके साथ ही इस कारण बहुत संकोच में थे कि यदि (मैंने ऐसा) किया तो इस्लाम के विरुद्ध हंगामा उठाने के लिए मुनाफिकों और यहूद और बहुदेववादियों को एक भारी शोशा हाथ आ जाएगा।

2) आयत 9 से लेकर 27 तक में अहज़ाब और बनी कुरैज़ा के अभियान और समीक्षा की गई है। यह इस बात का स्पष्ट लक्षण है कि ये आयतें इन अभियानों के पश्चात् अवतरित हुई हैं।

3) आयत 28 के आरम्भ से आयत 35 तक का अभिभाषण दो विषयों पर आधारित है। पहले भाग में नबी (सल्ल.) की पत्नियों को जो उस तंगी और निर्धनता के समय में अधीर हो रही थीं, अल्लाह ने नोटिस दिया है कि संसार और उसकी सजावट और अल्लाह और रसूल और परलोक में से किसी एक को चुन लो।

दूसरे भाग में सामाजिक सुधार (के पहले कदम के रूप में आपकी धर्म-पत्नियों को आदेश दिया गया है कि अज्ञानकाल की सज-धज से बचें, प्रतिष्ठा पूर्वक अपने घरों में बैठें और अन्य पुरुषों के साथ बातचीत करने में बहुत सतर्कता से काम लें। ये परदे के आदेशों का आरम्भ था ।

4) आयत 36 से 48 तक का विषय हज़रत ज़ैनब (रजि.) के साथ नबी (सल्ल.) के विवाह से सम्बन्ध रखता है। इसमें उन सभी आक्षेपों का उत्तर दिया गया है, जो विरोधियों की ओर से किए जा रहे थे। 

5) आयत 49 में तलाक के कानून की एक धारा वर्णित हुई है। यह एक अकेली आयत है जो सम्भवतः इन्हीं घटनाओं के सिलसिले में किसी अवसर पर अवतरित हुई थी।

6) आयत 50 से 52 तक में नबी (सल्ल.) के लिए विवाह का विशिष्ट विधान प्रस्तुत किया गया है।

7) आयत 53 से 55 तक में सामाजिक सुधार का दूसरा कदम उठाया गया है। वह निम्नलिखित आदेशों पर आधारित है: नबी (सल्ल.) के घरों में पराए पुरुषों के आने जाने पर प्रतिबंध, मिलने-जुलने और भोज-निमंत्रण का नियम, नबी (सल्ल.) की पत्नियों के विषय में यह आदेश कि वे मुसलमानों के लिए माँ की तरह हराम है।

8) आयत 56 से 57 में उन निराधार कानाफूसियों पर सख्त चेतावनी दी गई है जो नबी (सल्ल.) के विवाह और पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में की जा रही थीं।

9) आयत 59 में सामाजिक सुधार का तीसरा कदम उठाया गया है। इसमें समस्त मुस्लिम स्त्रियों को वह आदेश दिया गया है कि जब घरों से बाहर निकलें तो चादरों से अपने आपको ढाँक कर और घूँघट काढ़कर निकलें-इसके पश्चात् सूरह के अन्त तक अफवाह उड़ाने के उस अभियान (Whispering Campaign) पर कड़ी भर्त्सना की गई है, जो मुनाफ़िकों और मूर्खों और नीच प्रकृति के लोगों ने उस समय छेड़ रखा था।

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