सूरह धुहा (93) हिंदी में | Ad-Dhuha in Hindi

सूरह धुहा “Ad-Dhuha”
कहाँ नाज़िल हुई:मक्का
आयतें:11 verses
पारा:30

नाम रखने का कारण

पहले ही वाक्यांश “कसम है प्रकाशमान दिन (अज-जुहा) की” के शब्द ‘अज़-जुहा’ को इस सूरह का नाम दिया गया है। 

अवतरणकाल

इसका विषय साफ बता रहा कि यह मक्का मुअज्ज़मा के बिल्कुल प्रारम्भिक काल में अवतरित हुई है। उल्लेखों से मालूम होता है कि कुछ समय तक प्रकाशना के अवतरण का सिलसिला बन्द रहा था जिससे नबी (सल्ल0) बहुत व्याकुल हो गए थे और बार-बार आपको यह आशंका हो रही थी कि कहीं मुझ से कोई ऐसा कुसूर (कोताही) तो नहीं हो गया जिसके कारण मेरा प्रभु मुझ से अप्रसन्न हो गया और उसने मुझे छोड़ दिया है।

इस पर आपको आश्वस्त किया गया है कि प्रकाशना के अवतरण का क्रम किसी अप्रसन्नता के कारण नहीं रोका गया था, बल्कि इसमें वही अन्तर्हित क्रियाशील था जो प्रकाशमान दिन के बाद रात की शान्ति के आच्छादन में क्रियाशील होता है अर्थात् प्रकाशना का तीव्र प्रकाश यदि आप पर निरन्तर पड़ता रहता तो आपकी स्नायु उसे सहन न कर सकती।

इसलिए बीच में अन्तराल रखा गया, ताकि आप को शान्ति मिल जाए। नबी (सल्ल0) की यह मनःस्थिति नबूवत (पैग़म्बरी) के प्रारम्भिक काल में हो जाया करती थी, जबकि अभी आप को प्रकाशना के अवतरण की कठिनाई सहन करने की आदत नहीं पड़ी थी।

इसलिए बीच-बीच में अन्तराल की आवश्यकता होती थी। बाद में जब नबी (सल्ल0) में इस बोझ को उठाने की क्षमता उत्पन्न हो गई तो दीर्घान्तराल की आवश्यकता नहीं रही।

विषय और वार्ता

इसका विषय अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को सान्त्वना देना है और उद्देश्य उस परेशानी को दूर करना है जो प्रकाशना के अवतरण का सिलसिला रुक जाने से आपको हो रही थी।

सबसे पहले प्रकाशमय दिन और रात की शान्ति की सौगन्ध खा कर आपको शंकामुक्त किया गया है कि आपके प्रभु ने आपको कदापि नहीं छोड़ा है और न वह आप से अप्रसन्न हुआ है।

इसके पश्चात् आप को शुभ-सूचना दी गई है कि इस्लामी आह्वान के प्रारम्भिक काल में जिन बड़ी कठिनाइयों का आपको सामना करना पड़ रहा है, यह थोड़े दिनों की बात है।

आपके लिए हर काल अपने पहले काल की अपेक्षा बहुत अच्छा होता चला जाएगा और कुछ अधिक विलम्ब न होगा कि अल्लाह आप पर अपने कृपा प्रदान की ऐसी वर्षा करेगा जिससे आप संतुष्ट एवं सन्न हो जाएंगे।

यह कुरआन की उन स्पष्ट भविष्यवाणियों में से एक है जो बाद में पूरी हुई। तदान्तर अल्लाह ने अपने प्रिय मित्र (सल्ल0) से कहा कि तुम्हें यह परेशानी कैसे हो गई कि हमने तुम्हें छोड़ दिया है और हम तुम से अप्रसन्न हो गए है।

हम तो तुम्हारे जन्म दिन से निरन्तर तुम पर अनुकम्पाएं करते चले आ रहे हैं। तुम अनाथ पैदा हुए थे, हम ने तुम्हारे पालन-पोषण और देख-रेख की उत्तम व्यवस्था कर दी।

तुम मार्ग से अपरिचित थे, हम ने तुम्हें मार्ग दिखाया। तुम धनहीन थे, हम ने तुम्हें धनवान बनाया। ये सारी बातें साफ बता रही हैं कि तुम आरम्भ से हमारे प्रिय हो और इमारी उदार कृपा और हमारा अनुग्रह स्थायी रूप से तुम्हारी अवस्था का पर्याप्त बना हुआ है।

अन्त में अल्लाह ने नबी (सल्ल0) को बताया है कि जो उपकार हम ने तुम पर किए हैं, उनके प्रत्युत्तर में ईश्वर के प्राणियों के साथ तुम्हारा क्या व्यवहार होना चाहिए और हमारे अनुग्रहों और प्रदत्त सुख-सामग्रियों के प्रति तुम्हें किस तरह आभार व्यक्त करना चाहिए।

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