कुरआन पढ़ना इस्लाम धर्म में एक महत्वपूर्ण इबादत है, जिसे मुसलमानों के लिए सबसे बड़ी नेमत और रहमत माना गया है। इसकी तिलावत/पढ़ना न केवल आत्मा/रूह को शांति प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन को भी बेहतर दिशा में ले जाता है। कुरआन को समझना और उसको पढ़ना हर मुसलमान का कर्तव्य है।
रोज़ाना कुरआन मजीद की तिलावत किया करो, इसलिये कि-
(1) कुरआन पढ़ने की फ़ज़ीलत को समझने के लिए हमें इसके विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना होगा। जिसे पैग़ंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर उतारा गया। इसे पढ़ने और समझने से ईश्वर के करीब पहुंचने का मौका मिलता है। कुरआन केवल धार्मिक पुस्तक नहीं है; यह जीवन जीने का एक संपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।
(2) कुरआन पढ़ने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह हमारे दिल और दिमाग को सुकून देता है। जब पैग़ंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कुरआन पढ़ते हैं, तो उनके विचार सकारात्मक होते हैं और मन से नकारात्मकता दूर होती है। कुरआन पढ़ने से आपको सवाब मिलता है और आपके गुनाह माफ होते हैं।
पैग़ंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा है कि कुरआन का एक शब्द पढ़ने पर भी आपको सवाब मिलता है।
(3) कुरआन पढ़ने से ज्ञान और बुद्धिमत्ता का विकास होता है। यह हमें अच्छाई और बुराई के बीच अंतर करना सिखाता है। साथ ही, यह हमें सब्र और शुक्र करने की ताकत देता है। जिन लोगों को कुरआन पढ़ने की आदत होती है, वे मुश्किल हालात में भी संतुलन बनाए रख पाते हैं।
(4 ) क़ुरान की तिलावत से दुआएं कबूल होती हैं और समस्याएं हल होती हैं। यह अल्लाह से अपने रिश्ते को मजबूत करने का माध्यम है। कुरआन की आयतें दिल को ठंडक पहुंचाती हैं और व्यक्ति को दुनिया की परेशानियों से राहत दिलाती हैं।
(5) हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “कुरआन पढ़ा करो, इसलिये कि यह कुरआन क़ियामत के दिन पढ़ने वालों की शफाअत करने के लिये आयेगा।"
(6) जिस शख्स को कुरआन करीन (की तिलावत करने, याद करने, गौर-फिक्र करने और तर्जुमा तफसीर वगैरह करने) की मशगूलियत (और मसरूफियत) ने मेरा जिक्र करने और मुझ से दुआएं माँगने से रोक दिया (यानी ज़िक्र और दुआ माँगने की फुर्सत न मिली) तो मैं उस शख्स को उससे बढ़कर देता हूँ जो मैं दुआयें (और आवश्यकतायें) माँगने वालों को देता हूँ" (यानी उनकी समस्त आवश्यकताओं और मुरादों को पूरी कर देता हूँ)
(7) नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: "अल्लाह के कलाम को और तमाम कलामों पर ऐसी ही फजीलत (और बड़ाई) हासिल है, जैसी खुद अल्लाह तआला को अपनी तमाम मख्लूक पर।"
(8) एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: "कुरआन सीखो (और उस का ज्ञान हासिल करो) और उसको पढ़ो पढ़ाओ, इसलिये कि कुरआन की मिसाल उस शख्स के बारे में जिसने सीखा (और उसका ज्ञान प्राप्त किया) फिर उस को पढ़ा-पढ़ाया भी, और उस पर अमल भी किया (खास कर तहज्जुद की नमाज़ में पढ़ा) ऐसी है, जैसे मुश्क से भरी हुयी एक (मुँह खुली) थेली, जिसकी महक हर स्थान पर पहुँचती हो, और उस शख्स के हक में जो कुरआन को सीखता तो है (और उस का ज्ञान भी हासिल करता है) मगर (रात को गाफिल पड़ा) सोता रहता है (न तहज्जुद में कुरआन पढ़ता है और न उस पर अमल करता है) हालाँकि उसके (दिल के) अन्दर कुरआन मौजूद (और सुरक्षित) है, ऐसी है जैसे एक मुश्क से भरी हुयी थैली जिसका मुँह कस कर बाँध दिया गया हो।