ख़ाब किस से बयान करे?

अबू रजीन अक़ीली फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फरमाया: खाब नुबूव्वत का छियालिसवाँ हिस्सा है उस वक्त तक कि जब तक बयान न किया जाए, मुअल्लक रहता है। उसे अपने दोस्त, समझदार के अलावा किसी से न बयान किया जाए। 

एक रिवायत में है कि ख़ाब की जब तक ताबीर न दी जाए मुअल्लक रहता है। जब ताबीर दी जाती है तो वाक्रेअ हो जाता है। लिहाज़ा ख़ाब को किसी ख़ैर-खाह दोस्त और साहिबुराय के अलावा किसी से न बयान करो। 


हज़रत अबू हुरैरह (रजि०) से मरवी है कि आप (सल्ल०) ने फरमाया कि खाब किसी आलिम, या ख़ैर-खाह के अलावा किसी से बयान मत करो। 


हज़रत अनस (रजि०) से मरबी है कि आप (सल्ल०) ने फ़रमाया : जब तुममें से कोई ख़ाब देखे तो उसे किसी ख़ैर-खाह या साहिबे इल्म से बयान करो।


फायदा: मतलब यह है कि हर शख्स के सामने ख़ाब न बयान करे कि कहीं कोई नापसन्दीदा ग़लत ताबीर न दे दे। बल्कि दीनदार के सामने उसे पेश करे, और उसी से ताबीर ले कि बसा औक़ात जो ताबीर दी जाती है वाक्रेअ हो जाती है। मजीद यह भी ख्याल रहे कि हर ख़ाब काबिले ताबीर भी नहीं कि ख़ाब की ताबीर के लिए परेशान हो। 



ख़ाब अपने ख़ैर-ख़ाह दोस्त से बयान करे


हज़रत अबू क्रतादा (रजि०) कहते हैं कि आप (सल्ल०) ने फ़रमायः जब कोई अच्छा ख़ाब देखे तो उसे अपने दोस्त के अलावा किसी से बयान न करे।


फ़ायदा हाफ़िज़ इब्ने हजर ने लिखा है कि आप (सल्ल०) ने दोस्त के अलावा किसी और से इस वजह से मना किया है कि बसा औक़ात दूसरा शख्स बुग्ज या हसद की वजह से नापसन्दीदा ताबीर दे देते हैं और अक्सर वैसा ही वाक्रेअ हो जाता है। 

आप (सल्ल०) से मुतअदिदद अहादीस में मंकूल है कि हर शख्स से अपना ख़ाब न बयान करे, बल्कि आलिम, खैर-खाह, दोस्त, ज़ीअक्ल, साहिबुर्राय से बयान करे। हाफ़िज़ इब्ने हजर (रह०) ने लिखा है की आलिम जहाँ तक मुमकिन होगा अच्छी ताबीर निकालेगा। खैर-खाह खैर ही का रुख इख्तियार करेगा, दोस्त अगर खैर समझेगा तो ताबीर देगा, अगर कुछ शक होगा तो ख़ामोश हो जाएगा।


ख़ाब के ज़िक्र के आदाब


अहादीस पाक से अच्छे ख़ाब के जिक्र के तीन आदाब मालूम हुए :


 (1) अलहम्दुलिल्लाह कहे


 (2) उसे ज़िक्र करे


 (3) उसकी ताबीर किसी आलिम ख़ैर-खाह (वाक़िफ़े-फ़न) से ले।


ताबीर वाक्रेअ होती है


आप (सल्ल०) ने हज़रत आइशा (रजि०) से फ़रमाया कि जब तुम ताबीर दो तो अच्छी ताबीर दो, ख़ाब की ताबीर देनेवाले के मुआफ़िक वक़ेआ होती है। 


ताबीर के उसूल


इस हदीस से मालूम हुआ कि बिला सोचे समझे और उसूले ताबीर से वाक्रफ़ियत के बगैर ताबीर नहीं देना चाहिए। चूंकि ताबीर का देना एक लतीफ़ फ़न है। जो शख्स आलिमे-रब्बानी, मुत्तक्री, परहेज़गार, उलूमे इस्लाम से वाक़िफ़ आलिम इमसाल के नकात व इसरार का आलिम होगा, वही शख्स अच्छी ताबीर दे सकता है। 


ख़साइले नबवी में से है: ख़ाब की ताबीरों को देखना चाहिए। नबी करीम (सल्ल०) और सहाबा किराम और ताबईन से बकसरत खाबों की ताबीर नकल की गई है। फ़ने-ताबीर के उलमा ने लिखा है कि ताबीर देनेवाले शख्स के लिए जरूरी है कि समझदार, मुत्तक्की, परहेज़गार, किताबुल्लाह और सुन्नते रसूलुल्लाह (सल्ल०) का वाक़िफ़ हो।


दरबारे नुबुव्वत की चन्द ताबीरें चांद की ताबीर


हज़रत अबू बक्र (रजि०) कहते हैं कि नबी पाक (सल्ल०) ने "तुममें से किसी ने ख़ाब देखा है।" इसपर हज़रत आइशा (रजि०) रे फ़रमाया, मैंने देखा है कि तीन चाँद हमारे हुजरे में गिरे हैं। आपने फ़रमाया अगर तेरा ख़ाब सच है तो मेरा खयाल (इसकी ताबीर के मुताल्लिक यह है कि) इसमें तीन अफ़ज़लीन अहले जन्नत मदफून होंगे। चुनांचे आप सल्ल०, हज़रत अबू बक्क रजि०, हज़रत उमर (रजि०) उसमें मदफून हुए।


दूध पीने की ताबीर

 

हज़रत इब्ने उमर (रजि०) से मरवी है कि आप (सल्ल०) ने एक ख़ाब बयान किया है कि मेरे सामने दूध लाया गया, मैंने उसे पिया (और पीकर इस क़द्र सैराब हुआ) कि मैं देख रहा हूँ कि उसकी सैराबी नाखून से निकल रही है। फिर बाक़ी उमर को दे दिया। लोगों ने पूछा, आपने क्या ताबीर दी? आपने फ़रमाया इल्म से (बुखारी, जिल्द 2, पेज 1037)


फायदा- हाफ़िज़ इब्ने हजर ने लिखा है कि दूध की ताबीर कुरआन, सुन्नत इल्म से होती है। ( फ़तहुलबार, जिल्द 12, पेज 393)


लिहाज़ा जिसने जितना दूध पीता देखा, उसी क़दूर वह इल्म से मुस्तफ़ीज़ होगा। बकरी का दूध कमाले सेहत, खुशी की तरफ़ इशारा है, गाय का दूध मुल्क की खुशहाली की तरफ़ इशारा है, अलबत्ता दरिन्दों का दूध देखना अच्छा नहीं है।


शहद और घी की ताबीर


हजरत इब्ने उमर (रजि०) से रिवायत है कि उन्होंने खाब में देखा कि उनके दो उंगलियों में से एक उंगली में शहद और दूसरी उंगली में घी है। दोनों को चाट रहे हैं। आप (सल्ल०) ने ताबीर देते हुए फ़रमाया : अगर तुम जिन्दा रहे तो दो किताबें यानी तौरात और कुरआन पढ़ोगे । यानी उसके आलिम होगे। चुनांचे दोनों के आलिम हुए।


फायदा : शहद और घी की ताबीर इल्म और भलाई से होती है।


सर कटने की ताबीर


अबू मुजलज़ (रह०) कहते हैं कि एक शख्स आप (सल्ल०) की ख़िदमत में आया और अर्ज किया कि में ख़ाब देखता हूँ कि मेरा सर काट दिया गया है और मैं उसे देख रहा हूँ? आप (सल्ल०) मुस्कुराए और फ़रमाया : जब तुम्हारा सर काट दिया गया तो तुम किस आँख से देख रहे थे। अभी कुछ ही देर हुई थी कि उनका इंतिकाल हो गया। सर कटने की तावील उनकी बफ़ात से दी और देखने की ताबीर इत्तिबाए सुन्नत से।


ख़ाब गोया हक़ीक़त


हज़रत खुजैमा बिन साबित (रजि०) ने ख़ाब में देखा कि उन्होंने नबी पाक (सल्ल०) की पेशानी मुबारक पर सज्दा किया, उन्होंने उसका तल्किरा आप (सल्ल०) से किया। आप (सल्ल०) लेट गए और उन्होंने आपकी पेशानी पर सज्दा किया। 


फायदा : ख़ाब को आप (सल्ल०) ने हक़ीक़त में पेश कर दिया, जिससे ख़ाब का सच्चा होना वाजेह हो गया। मुल्ला अली क़ारी (रह०) ने इस हदीस पाक से यह उसूल मुस्तंबित किया है कि ख़ाब में कोई नेक काम करता देखे तो बेदारी में कर लेना मुस्तहब है।


सफ़ेद लिबास की ताबीर


हज़रत आइशा (रजि०) से मरवी है कि आप (सल्ल०) से बरक़ा बिन नोफ़ल के बारे में मालूम किया गया। हज़रत खदीजा (रज़ि०) ने कहा कि उन्होंने तो आपकी तस्दीक़ की थी लेकिन जुहूरे-नुबुब्बत से पहले उनका विसाल हो गया। आपने फ़रमाया कि ख़ाब में दिखाए गए तो उन पर सफेद लिबास था अगर वे दोज़खी होते तो उनका लिबास इसके अलावा होता।


सफ़ेद कपड़े में मलबूस होने की वजह से आप (सल्ल०) ने इनको नाजी में शुमार फ़रमाया, इससे मालुम हुआ कि किसी को सफेद मलवूस में देखा जाए तो ये नजात याफ़ता की अलामत है।


चन्द ख़ाबों की ताबीर


हाफ़िज़ इब्ने हजर अस्कलानी ने शरह बुख़ारी में अहादीस से माख़ूज चन्द ताबीरें बयान की हैं। उनमें से हम चन्द तावीरें नकल करते हैं:


 (1) ख़ाब में महल का देखना : दीनदार देखे तो अमल सालेह की तरफ़ इशारा है, गैर-दीनदार देखे तो क़ैद और तंगी की तरफ़ इशारा है और महल में दाखिल होना शादी की तरफ इशारा है।


(2) खाब में वुजू करते हुए देखना - किसी अहम काम के होने की तरफ़ इशारा है। अगर वुज़ू मुकम्मल किया है तो उसकी तक्मील और अगर अधूरा छोड़ा है तो उसके नाक्रिस होने की तरफ इशारा है। 


(3) ख़ाब में काबा का तवाफ़ - हज और निकाह की तरफ इशारा है।


(4) प्याला का देखना - औरत या औरत की जानिब से माल मिलने की तरफ़ इशारा है। 


(5) जिसने ख़ाब में कोई बड़ी तलवार देखी -अन्देशा है कि किसी फ़ितने में पड़ेगा, तलवार पाने से इशारा है हुकूमत या वलायत या ऊँची मुलाज़िमत की तरफ़ तलवार को मयान में कर लेना इशारा है शादी की तरफ़


(6) खाब में कमीज पहने देखना - दीन की जानिब इशारा है, जिस क़दर लम्बी कमीज़ और बड़ी देखेगा उसी क़दर दीन और अमले सालेह की ज़्यादती की जानिब इशारा होगा।


(7) शादाब बाग़ीचे की ताबीर भी दीने इस्लाम से है, कभी हरे-भरे बाग की ताबीर इल्मी किताबों से भी होती थी।


(8) औरतों का देखना - हुसूले दुनिया और कभी वुसअते रिज़्क की जानिब इशारा होता है। 


कभी-कभी औरतों का देखना और उससे लुत्फ़ व हिज़ हासिल करना यह शैतानी ख़ाब होता है, इसकी कोई ताबीर नहीं जैसा कि उमूमन नई उम्रवालों को होता है।


Post a Comment