कहाँ नाज़िल हुई: | मदीना |
आयतें: | 286 |
पारा: | 1-3 |
नाम रखने का कारण
इस सूरह का नाम बकरा इसलिए है कि इसमें एक जगह बकरा (गाय) का उल्लेख है। कुरआन मजीद की प्रत्येक सूरत में इतने अधिक फैले हुए विषयों का उल्लेख हुआ है कि उनके लिए विषय की दृष्टि से समाहर्ता शीर्षक नियत नहीं किया जा सकता। अतः नबी (सल्ल0) ने अल्लाह के मार्गदर्शन में कुरान की अधिकतर सूरतों के लिए शीर्षकों के स्थान पर नाम निर्धारित किए हैं जो मात्र चिन्ह का काम करते हैं।
इस सूरह को बकराह कहने का अर्थ यह नहीं है कि इसमें गाय की समस्या पर विवेचन किया गया है, बल्कि इसका अर्थ केवल यह है कि ‘वह सूरह जिसमें गाय का उल्लेख किया गया है।’
अवतरणकाल
इस सूरा का अधिकतर हिस्सा मदीना की हिजरत के पश्चात् मदनी जीवन के बिल्कुल आरंभिक काल में अवतरित हुआ है और थोड़ा हिस्सा ऐसा है जो बाद में उतरा है, विषय की अनुकूलता की दृष्टि से इसमें सम्मिलित कर दिया गया।
अवतरण की पृष्ठभूमि इस सूरा को समझने के लिए पहले इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए।
हिजरत से पूर्व जब तक मक्का में इस्लाम की ओर बुलाया जाता रहा, सम्बोधन अधिकतर अरब के बहुदेववादियों से था, जिनके लिए इस्लाम की आवाज़ एक नई और अपरिचित आवाज़ थी। जब हिजरत के बाद यहूदी सामने आए। ये लोग एकेश्वरवाद, रिसालत (पैग़म्बरी), परलोक और फरिश्तों को मानते थे और सिद्धांततः उनका धर्म वही इस्लाम था जिसकी शिक्षा हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) दे रहे थे।
लेकिन शताब्दियों की निरंतर अवनति ने उनको वास्तविक धर्म से बहुत दूर हटा दिया। जब नबी (सल्ल0) मदीना पहुंचे तो सर्वोच्च अल्लाह ने नबी को आदेश दिया कि उनको वास्तविक धर्म की ओर बुलाएं, अतएव सूरह बकरा की आरम्भिक आयतें इसी बुलावे या आमंत्रण से सम्बन्ध रखती हैं।