नाम रखने का कारण
पहली ही आयत “जब अल्लाह की मदद (नस्र) आ जाए” के शब्द ‘नस्र’ को इस सूरह का नाम दिया गया है।
अवतरणकाल
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि०) का बयान है कि यह कुरआन मजीद की अन्तिम सूरह है अर्थात् इसके पश्चात कुछ आयतें तो अवतरित हुई, किन्तु कोई पूर्ण सूरह नबी (सल्ल0) पर अवतरति नहीं हुई। (हदीसः मुस्लिम, नसी, तबरानी, इब्ने अबी शैबा, इब्ने मरदूयह )
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर से उल्लिखित है कि यह सूरह हज्जतुल-विदाअ (नबी सल्ल0 का अन्तिम हज) के अवसर पर अय्यामे तशरीक् (कुर्बानी के तीन दिन) के मध्य में मिना के स्थान पर अवतरित हुई और इसके पश्चात् नबी (सल्ल0) ने अपनी ऊँटनी पर सवार हो कर अपना प्रसिद्ध अभिभाषण दिया।
इसके बाद जब हम लोग मदीना लौटे तो कुछ अधिक दिन नहीं बीते थे कि नवी (सल्ल0) का देहान्त हो गया। इन दोनों रिवायतों ( उल्लेखों) को मिला कर देखा जाए तो मालूम होता है कि सूरह ‘नम्र’ के अवतरण और अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के दुनिया से प्रस्थान करने के मध्य तीन महीने कुछ दिन का अन्तराल था, क्योंकि इतिहास की दृष्टि से हज्जतुल विदाअ और हुजूर (सल्ल0) के देहावसान के मध्य इतना ही समय गुज़रा था।
विषय और वार्ता
जैसा कि उपर्युक्त उल्लेख से मालूम होता है इस सूरह में अल्लाह ने अपने ने (सल्ल0) को यह बतावा था कि जब अरब में इस्लाम की विजय पूर्ण हो जाए और अल्लाह के दीन (धर्म) में लोग दल-के-दल प्रवेश करने लगें, तो इसका अर्थ यह है कि वह काम पूरा हो गया जिसके लिए आप संसार में भेजे गए थे।
तदान्तर आप को आदेश दिया गया कि आप अल्लाह की स्तुति और उसकी महानता का वर्णन करने में लग जाएँ कि उसकी उदार कृपा से आप इतना बड़ा काम सम्पन्न करने में सफल हुए और उससे प्रार्थना करें कि इस सेवा के करने में जो भूल-चूक या कोताही भी आप से हुई हो, उसे वह क्षमा कर दे।
सूरह नस्र (110) हिंदी में
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।
- (1) जब अल्लाह की मदद आ जाए और विजय प्राप्त हो जाए।
- (2) और (ऐ नबी) तुम देख लो कि लोग दल के दल अल्लाह के दीन (ईश्वरीय धर्म) में प्रवेश कर रहे हैं।
- (3) तो अपने रब की प्रशंसा साथ उसकी तस्बीह (गुणगान करो, और उससे माफ़ी की दुआ माँगो। बेशक वह बड़ा तौबा क़बूल करने वाला है।