नाम रखने का कारण
सूरह की पहली ही आयत “बहुत ही बरकत वाला है वह जिसने यह फुरकान (कसौटी) अवतरित किया,” से उद्धृत है। यह भी कुरआन की अधिकतर सूरतों के नामों की तरह चिन्ह के रूप में है, न कि विषय वस्तु के शीर्षक के रूप में। फिर भी सूरह के विषय और इस नाम के साथ एक निकटवर्ती अनुकूलता पाई जाती है, जैसा कि आगे चलकर मालूम होगा।
अवतरणकाल
वर्णन-शैली और वार्ताओं पर विचार करने से साफ़ पता चलता है कि इसका अवतरणकाल भी वही है जो सूरह 23 (मोमिनून) आदि का है, अर्थात् मक्का निवास का मध्यकाल ।
विषय और वार्ताएँ
इसमें उन सन्देहों और आक्षेपों की समीक्षा की गई है, जो कुरआन और मुहम्मद (सल्ल.) की पैग़म्बरी और आपकी प्रस्तुत की गई शिक्षा पर मक्का के काफिरों की ओर से प्रस्तुत किए जाते थे।
उनमें से एक-एक का जँचा-तुला उत्तर दिया गया है और साथ-साथ सत्य आमंत्रण की ओर से मुंह मोड़ने के बुरे परिणाम भी साफ-साफ बताए गए है।
अन्त में सूरह मोमिनून की तरह ईमानवालों के नैतिक गुणों की एक रूपरेखा खींचकर जनसामान्य के सामने रख दी गई है कि इस कसौटी पर कसकर देख लो, कौन खोटा है और कौन खरा है।
एक ओर उस आचार और चरित्र के लोग हैं जो मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षा से अब तक तैयार हुए हैं और भविष्य में तैयार करने की कोशिश हो रही है। दूसरी ओर नैतिकता का वह दृष्टान्त है जो अरब के जनसामान्य में पाया जाता है और जिसे बाकी रखने के लिए अज्ञानता के ध्वजवाहक एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।
अब स्वयं फैसला करो कि इन दोनों नमूनों में से किसे पसंद करते हो? यह एक शब्द मुक्त प्रश्न था जो अरब के हर निवासी के सामने रख दिया गया और कुछ थोड़े वर्षों के भीतर एक छोटी-सी अल्पसंख्या को छोड़कर संपूर्ण जाति ने इसका जो उत्तर दिया वह समय के पत्र पर अंकित हो चुका है।