कहाँ नाज़िल हुई: | मक्का |
आयतें: | 3 verses |
पारा: | 30 |
नाम रखने का कारण
पहले ही आयत के शब्द “अल्-अस” (ज़माना) को इसका नाम दिया गया है।
अवतरणकाल
बहुसंख्यक टीकाकारों ने इसे मक्की घोषित किया है और इसकी वार्ता यह गवाही देती हैं कि यह मक्का के भी आरम्भिक काल में अवतरित होगी जब इस्लाम की शिक्षा को संक्षिप्त और अत्यन्त हृदयग्राही वाक्यों में बयान किया जाता था, ताकि वे आप से आप लोगों की ज़बानों पर चढ़ जाएँ।
विषय और वार्ता
यह सूरह व्यापक, अर्थगर्भित और संक्षिप्त सूक्ति का अद्वितीय नमूना है। इसमें बिल्कुल दो-टूक तरीके से बता दिया गया है कि इन्सान के कल्याण का मार्ग कौन सा है और उसके विनाश का मार्ग कौन सा इमाम शाफई (रह0) ने बहुत ठीक कहा है कि यदि लोग इस सूरह पर विचार करें तो यही उनके मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है।
सूरह अस्र (103) हिंदी में
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।
- (1) ज़माने की कसम
- (2) इन्सान वास्तव घाटे में है।
- (3) सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए, और अच्छे कर्म करते रहे, और एक दूसरे को हक की नसीहत और सब्र की ताकीद करते रहे।